भूतनाथ ३२ तेजी के साथ चल कर दो ही घण्टे में वह अपनी घाटी के मुहाने पर जा पहुँचा जहां रहता था तथा जो कला और बिमला की घाटी के साथ सटी हुई थी। वहां उसके शागिर्द लोग उसका इन्तजार कर रहे होगे यह सोच भूसनाथ तेजी से कदम बढाता हुमा उस सुरग के अन्दर घुसा। सुरग के अन्दर घुसने के बाद वह उसी चौमुहानी पर पहुचा जिसका जिक्र ऊपर कई दफे पा चुका है। इसके बाद वह अपनी घाटी की तरफ घूमा और उस सुरंग में घुसा मगर दो ही चार कदम आगे जाने के वादा दरवाजा बन्द देख उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ, उसका दिमाग हिल गया और हिम्मती होने पर भी वह एक दफे कांप उठा। प्रभाकरसिंह की गठरी उसने जमीन पर रख दी और बटुए में से सामान निकाल रोशनी करने के बाद अच्छी तरह गोर करके देखने लगा कि रास्त पयोकर बन्द हो गया, मगर उसकी समझ में कुछ भी न पाया। उसने सिर्फ इतना देखा कि लोहे का एक बहुत बडा तख्ता सामने भडा हुआ है जिसके कारण यह बिल्कुल नही जान पडता कि उसका घर किस तरफ है। उसने दर्वाजा खोलने की बहुत कोशिश की और वही देर तक हैरान रहा मगर सव बेकार हुमा । यह सोच कर उसकी प्रांखों में मासू भर पाये कि हाय उसके कई शागिर्द जो इस घाटी के अन्दर है सव वेचारे भूख के मारे तडप कर मर जायगे, क्योंकि इस रास्ते के सिवाय बाहर निकलने के लिये उन्हें कोई दूसरा रास्ता न मिलेगा। प्रमाकरसिंह की गठरी लिए हुए भूतनाथ घबडाया हुमा सुरग के बाहर निकल पाया और एक घने पेड़ के नीचे बैठ कर सोचने लगा कि मव क्या करना चाहिये ? इस समय यहाँ मेरा कोई शागिर्द या नौकर भी नहीं मिल सफता जिससे किसी तरह का काम निकाला जाय । जिस खयाल से प्रभाकर. सिंह को ले पाया था वह काम भी नहुमा । हाय, मेरे मादमी एकाएक जहन्नुम में मिल गये भोर में उनकी कुछ भी मदद न कर सका ! मालुम होता है कि यहा का कोई सच्चा जानकार मा पहुंचा जिसने इस घाटी पर कब्जा कर
पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१३७
दिखावट