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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१७३

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भूतनाथ किया चाहता था कि प्रभाकरसिंह ने अपनी तलवार से उसे भी काट कर दो टुकडे कर दिया । भूतनाथ को बड़ा ही ताज्जुब हुआ और वह सोचने लगा कि यह अनूठी तलवार किस लोहे की बनी हुई है जो दूसरे हों को इतने सहज ही में काट डाला करती है। थोडी ही दूर पर भूतनाथ के कई प्रादमी खडे यह तमाशा देख रहे थे मगर मालिक का इशारा पाये बिना पास नही पा सकते थे। इस समय भूतनाथ ने उन्हें इशारा किया और वे लोग जो गिनती में पाठ थे वहाँ मा मौजूद हुए । यह कैफियत देख कर प्रभाकरसिंह ने कहा, "भूतनाथ में केवल तुम्ही से नहीं बल्कि एक साथ इन सभों से लड़ने के लिए तैयार है।" यह वात भूतनाथ को बहुत बुरी मालूम हुई और अपने एक साथी के हाथ से तलवार लेकर उसने पुन प्रभाकरसिंह पर वार किया और साथ साथ अपने साथियो को भी मदद करने के लिए इशारा किया। प्रभाकरसिंह बडा ही बहादुर मादमी था और लड़ाई के फन में तो वह लासानी था। अगर वह चाहता तो सहज ही में अपनी तिलिस्मी तलवार से जख्मी करके सभों को वेहोश कर देता, मगर नहीं, उसने कुछ देर तक लड कर सभी को दिखला दिया कि हमारे सामने तुम लोग कुछ भी नहीं हो। यद्यपि उसके बदन पर भी कई जरूम लगे, मगर उसने सभों के हवे बेकार कर दिये और अन्त में भूतनाथ तथा उसके सभी साथी जख्मी होकर तल. वार वाली विजली के असर से बेहोश हो जमीन पर गिर पडे । प्रभाकरसिंह घोरे धीरे मस्तानी चाल से चलते हुए वहां से रवाना हुए, मगर जव सुरग में पाये मोर दर्वाजा वन्द पाया तव मजबूर होकर उन्हें रुक जाना पड़ा। प्रभाकरसिंह पुन लौट कर यहाँ भाये जहाँ भूतनाथ और उसके साथी लोग बेहोश पड़े हुए थे। तिलिस्मी तलवार के जोड की अगूठी उन्होने भूतनाथ के बदन से लगाई,उसी समय भूतनाथ को बेहोशी जाती रही, वह उठ कर खड़ा हो गया पौर ताज्जुब के साथ प्रभाकरसिंह का मुह देखने लगा। प्रभा० । कहो अव पया इरादा है ?