पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१७८

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दूसरा भाग . वे मर गई? भूत० । हा मुझे ऐसा ही विश्वास था, मुझे क्या तमाम दुनिया यहो जानती है कि दोनो मर गई मगर अब मुझे मालूम हुया कि वे दोनों जीती है और (हाथ का इशारा करके) इसी पडौस वालो घाटी मे रहती हैं तथा उन्होने अपने को कला और विमला के नाम से मशहूर किया है, इसलिए कि मुझे सवा कर अपना कलेजा ठण्डा करें क्योकि किसी ने दोनों को विश्वास दिलाया है कि दयाराम को भूतनाथ ही ने मार डाला है। भोला० । शिव शिव शिव, भला यह भी कोई बात है ! अच्छा तो ये सब वा श्रापको किस तरह मालूम हुई ? भूत० । मै एक दफे उनके फन्दे में पड़ गया था, वे मुझे गिरफ्तार करके अपनी घाटी मे ले गई और कैद कर दिया। भोला । फिर आप छूटे किस तरह से ? भूत० । यहा मैंने एक लोंडो को धोखा देकर अपना वटुग्रा जो घिन गया था मंगवा लिया। फिर कैदखाने से बाहर निकल जाना मेरे लिये कोई कठिन काम न था। इसके बाद मैने उसी अन्धेरी रात में पुन. एक लोंडी को गिरफ्तार किया और लालच दे कुछ पता लगाना चाहा मगर वह लालच में न पडी । तब मैने अपने चाबुक से काम लिया. मुख्तसर यह कि वह मार जाते साते मर गई पर इससे ज्यादे मोर कुछ भी न बताया कि हा जमना और सरस्वतो यहा रहती हैं और उन्होंने अपना नाम कला और विमला रक्खा है। इसके बाद एक ऐमा मौका हाय पाया कि मैने पाला को पकड लिया। उस समय मुझे विश्वास हो गया कि जमना या सरस्वतो में किसी एक को पकड लिया, मगर दिन के समय जब मैंने उसको सूरत देशो तो मालूम हमा कि जमना सरस्वती दोनों में गे कोई नहीं है क्योंकि नाम बदल दिया तो पया हुप्रा में उन दोनो को अच्छी तरह पहिचानता हूं । पहिने तो शक हुमा कि शायद ऐयारी उन पर इसने मूरत वदन लो है मगर नहीं, पानो ने मुंह पुलवाने पर यह शक भी जाता रहा ।