दूसरा भाग जिक्र कदापि न करेगा। बिमला० । मगर दुश्मनी तो जरूर करेगा, क्योकि उसे इस बात का डर हो जायगा कि कही इन्दु इन सब बातो का भेद किसी से बोल न दे। प्रभा० । एक तो वह जमानिया विशेप नाता ही नहीं है, दूसरे अगर कभी गया भी तो महल के अन्दर उसकी गुजर नही होती, तीसरे अगर वह किसी तरह इन्दु को देख भी लेगा तो वहा कुछ गडबडी करने की उसको हिम्मत ही नहीं पडेगा । फिर इसके अतिरिक्त और मै कर ही क्या सकता हूं, मेरे लिये दूसरा कौन सा घर है ' हो अपने साथ नौगढ ले चलू तो हो सकता है, वहां भूतनाथ के जाने का डर नहीं है । इन्दु । मेग ख्याल तो यही है कि जमानिया को बनियत नौगढ़ में में ज्यादा निडर रहूँगो । विमला० । तो आप इन्हे इसी जगह हमारे पास क्यो नहीं छोद जाते। प्रभा० । यहा तुम लोग स्वयम् ही तरदुद में पड़ी हुई हो, इसके सवव से और भो..... विमला० । नहीं नहीं, इसके सवव से किसी तरह की तकलीफ मुझे नहीं हो सकती है, और फिर अगर में ज्यादे बडा देसूगी तो इन्हें इन्द्र- देवजी के सुपुर्द कर दूगी वे अपने घर ले जायगे। प्रभा० । यह सबसे ठीक है, इन्द्रदेव जा का घर हमारे लिए सब से प्रच्छा है, और उन्होंने ऐमा कहा भो पा कि अगर तुम्हागे राय हो तो इन्दु को मेरे घर पर रख सकते हो। विमला। तो बस यही ठीक रयिये पोर इन्हें मेरे पास छोड जाये। प्रभाकरसिंह से और कला विमला तथा इन्दुमति से इस विषय पर बड़ी देर तक वहस होता रहो और अन्त म लाचार होकर प्रभाकरसिंह को विमला की बात मानना पो मर्यात इन्दुमति को विमला हो के पास घोर देना पड़ा। रात भर प्रभाकरसिंह वही रहे और प्रात काल समो में मिल जुल कर नोगह की तरफ रवाना हुए।
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