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भूतनाथ
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तुम्हारी सहायता करेगा और मैं हर तरह से तुम्हारी मदद के लिए तैयार हू । मेरी यह प्रबल इच्छा है कि किसी तरह उन तीनो का पता लगे, यदि मुझे इस बात का निश्चय हो जायगा कि उन तीनों से भूतनाथ ने कोई अनुचित व्यवहार किया है तो मैं निसन्देह भूतनाथ से बदला लूंगा मगर जब तक इस बात का निश्चय न होगा मैं कदापि भूवनाथ से सम्बन्ध न तोडूंगा, हा तुम्हें हर तरह से मदद बराबर देता रहूगा।

प्रभा० । अच्छा तो फिर मुझे शीघ्र बताइये कि अब क्या करना चाहिये, अब मुझमें बैठे रहने की सामर्थ्य नहीं है।

इन्द्र० । जल्दी न करो, मैं सोच विचार कर कल तुमसे कहूंगा कि अव क्या करना चाहिए, एक दिन के लिये और सब्र करो।

प्रभा० । जो माज्ञा, परन्तु...

लाचार होकर प्रभाकरसिंह को इन्द्र देव को बात माननी पडी परन्तु इस बात का उनको आश्चर्य बना ही रहा कि इन्द्रदेव ने जमना और सरस्वती के लिए इतनी सुस्ती क्यों को और वास्तव में जमना और सरस्वती गायव हो गई है या इसमें भी कोई भेद है।

पन्द्रहवां बयान

अब हम कुछ हाल जमना सरस्वती और इन्दुमति का बयान करना उचित समझते हैं। जब महाराज शिवदत्त से बदला लेने का विचार करके प्रभाकरसिंह नौगढ की तरफ रवाना हो गये तो उनके चले जाने के बाद बहुत दिनों तक जमना प्रौर सरस्वती को कोई ऐसा मौका हाथ न आया कि भूतनाथ से कुछ छेडछाड करें और न भूतनाथ ही ने उनके साथ कोई बदसलूकी कि, हा यह जरूर होता रहा कि जमना और सरस्वती भूतनाथ की घाटी में ताकझांक करके इस बात की वरावर टोह लगाती रही कि भूतनाथ क्या करता है अथवा किस धुन में है ।

घोडे ही दिनों में उन दोनो को मालूम हो गया कि भूतनाथ अब इस