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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२१६

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दुसरा भाग
 

इन्दु । (प्रसन्न होकर ) वेशक आपने बड़ी वहादुरी की । घोडा भी उस समय समझ गया कि जब आप वेहोश हो गये हैं और इसलिये आपको वहा से ले भागा।

प्रभा० । बेशक ऐसा ही हुआ होगा।

जमना० । अब आप आज्ञा दीजिये तो कपड़े उतार कर आपके ज़ख्म धोये जायें।

प्रभा० । जरा और ठहर जाओ क्योकि मैं उठ कर मैदान जाने का इरादा कर रहा हू । ज़ख्म मुझे बहुत गहरे नहीं लगे हैं, इन पर कुछ दवा लगाने की जरूरत न पडेगी, केवल धोकर साफ कर देना ही काफी होगा। मेरे लिए एक धोती और गमछे का बन्दोबस्त करो और दोआदमी सहारा देकर उठाओ तथा मैदान की तरफ ले चलो।

जमना० । बहुत अच्छा ऐसा ही होगा।

इतना कह कर जमना ने एक लौंडी की तरफ देगा। वह मामान दुरुस्त करने के लिये वहां से चली गई नौर दूसरी लौंडी ने बाहर जाने के लिये जल का लोटा भर पर अलग रख दिया। प्रभाकरसिंह ने उठने का इरादा किया, जमना सरस्वती और इन्दु ने सहारा देकर उन्हें उठाया बल्कि खड़ा कर दिया ! जमना और इन्दु का हाथ थामे हए प्रभाकरसिंह धीरे धीरे वहा से मैदान की तरफ रवाना हुए तथा पीछे पीछे कई लौंडिया भी जाने लगी। उस समय वहां हरदेई लौटो भी मोजूद थी जिनका हाल जार के बयान में लिखा है,हरदेई ने जल से भरा हुआ लोटा उठा लिया और प्रभाकरसिंह के साथ साथ जाने लगी

कुछ दूर आगे जाने पर प्रभाकरसिंह में कहा, "इस तरह चलने और घूमने से तबीयत साफ हो जाती है, तुम लोग अब ठहर जाओ में अब सिर्फ एक लाठी का सहारा लेकर और आगे जाऊंगा।" इतना यह चार प्रभाकरसिंह ने हरदेई की तरफ देखा ओर जमना तथा इन्दु का साथ छोड़ दिया । हरदेई जल का लोटा लिये हुए आगे बड़ पाई और अपने