सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०७
दूसरा भाग
 

इन्दु ३० । (प्रसन्न होकर ) बेशक आपने वडो वहादुरी को । घोडा भी उस समय समझ गया कि अव श्राप बेहोश हो गये हैं और इसलिये आपको वहा से ले भागा।

प्रभा० । वेशक ऐसा ही हुया होगा।

जमना । अव पाप प्राज्ञा दीजिये तो कपडे उतार कर प्रापके जख्म घोये जाय।

प्रभा० । जरा और ठहर जाप्रो क्योकि मैं उठ कर मैदान जाने का इरादा कर रहा हू । जस्म मुझे बहुत गहरे नहीं लगे हैं, इन पर कुछ दवा लगाने की जरूरत न पडेगी, केवल धोकर साफ कर देना ही काफी होगा!मेरे लिए एक बोती पीर गमछे का बन्दोबस्त करो और दो आदमी सहारा देकर उठायो तया मंदान को तरफ ले चलो।

जमना० । बहुत पच्छा ऐसा ही होगा।

इतना कह कर जमना ने एक लौंडो को तरफ देवा । वह सामान दुरस्त करने के लिये वहां से चली गई और दूमरो लोडो ने वाहर जाने के लिये जल का लोटा भर कर प्रनग रख दिया। प्रभाह ने उठने का इरादा किया, जमना सरम्तो पोर इन्दु ने महारा देकर उन्हें उठाया परिक सदा कर दिया ! जमना और इन्दु का हाथ थामे एप्रभाकरसिंह धोरे घोरे वहा से मैदान को तरफ रवाना हुए तथा पोछे पोछे कई लोडिया भी जाने लगी। उस समय का हरदेई लौटी भी मौजूद थो जिमका हाल जार के वयान में किरा पाये है, हरदेई ने जल से भरा हया नोटा उठा लिया और प्रभाकरसिंह के पास जाने लगी

कुछ दूर आगे जाने पर प्रभाकरसिंह ने कहा, "इस तरह चलने और घूमने से तबीयत साफ हो जाती है, तुम लोग पर ठहर जाओ में अब सिर्फ एक लोटो के हाथ का सहारा लेकर और आगे जाऊंगा।" इतना यह भार प्रमावाहि ने हरदेई की तरफ देगा और जमता तपा इन्दु का हाय घोट दिया । हरदेई जर का नोटा लिये हुए प्रागे वर माई पोर अपने