पूतनाथ १० सिंह की शादी के पहिले का कुछ हाल लिखा जायगा । इसका कारण यही है कि यह भूतनाथ चन्द्रकान्ता सन्तति का परिशिष्ट भाग समझा जाता है। अपने सगी साथियो को साथ लिए हुए बाबू साहब जो भागे तो सीधे अपने घर की तरफ नही गये वल्कि नागर रडी के मकान पर चले गये क्योकि वनिस्वत अपने घर के उन्हें उसी का घर प्यारा था और उसी को वे अपना हमदर्द और दोस्त समझते थे। जिस समय वे उस जगह पहुंचे तो सुना कि नागर अभी तक वैठी हुई उनका इन्तजार रही है। वाबू साहब को देखते ही नागर उठ खडी हुई और वडी खातिरदारी के साथ उनका हाथ पकड कर अपने पास एक ऊची गद्दी पर बैठाया और मामूल के खिलाफ अाज देर हो जाने का सबब पूछा, मगर वावू साहव ऐसे बद- हवास हो रहे थे कि उनके मुह से कोई बात न निकलती थी। उनकी ऐसी अवस्था देख कर नागर को बडा ही प्राश्चर्य हुआ और उसने लाचार होकर उनके साथियो से उनकी परेशानी और वदहवासी का कारण पूछा। बाबू साहब कोन है और उनका नाम क्या है इसका पता अभी तक नही मालूम हुआ, इमके जानने की विशेप अावश्यकता भी नही जान पडती इसलिए अभी उन्हें बाबू साहब के नाम ही मे सम्बोधन करने दीजिए भागे चल कर देखा जायगा । बाबू साहब ने अपनी जुबान में अपनी परेशानी का हाल यद्यपि नागर से कुछ भी नही कहा मगर उनके साथियो की जुबानी उनका कुल हाल नागर को मालूम हो गया और तव नागर ने दिलासा देते हुए बाबू साहब से कहा, "यह तो मामूली घटना थो।" वायू साहव० । जी हा, मामूली घटना थी। अगर उस समय प्राप वहा होती तो मालूम हो जाता कि मामूली घटना कैसी होती है। नागर० । ( मुस्कुराती हुई ) सैर किसी तरह मुह से बोले तो सही । वावू माहव० । पहिले यह तो वताप्रो कि नीचे का दवांजा तो वन्द है ? यही कोई मान जाय और हम लोगो की बातें न मुन ले।
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