पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२७५

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३२ भूतनाथ उनके चेहरे की तरफ बडे गौर से देख रहा था । नकली हरदेई अर्थात् रामदास के दिल की अवस्था भी अच्छी न थी। वह कहने के लिये तो सब कुछ कह गया परन्तु उसका परिणाम क्या होमा यह सोच पर उसका दिल डांवाडोल होने लगा । यद्यपि इस तिलिस्म में फंस कर वह वर्वाद हो चुका था वल्कि थोडी देर पहिले तो मौत की भया- नक सूरत अपनी आखो के सामने देख रहा था परन्तु प्रभाकरसिंह पर निगाह पडते ही उसकी काया पलट हो गई और उसे विश्वास हो गया कि अब किसी न किसी तरह उसकी जान बच जायगी । परन्तु इन्दुमति को वदनाम करके उसका चित्त भी शान्त न रहा और थोड़ी ही देर बाद वह सोचने लगा कि मैने यह काम अच्छा नहीं किया। यदि में कोई दूसरा ढग निकालता तो कदाचित यहा से शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता परन्तु अव जल्दी छुटकारा मिलना मुश्किल है क्योकि मेरी बातो का निर्णय किये विना प्रभाकरसिंह मुझे यहाँ से बाहर नहीं जाने देंगे। अफसोस भूतनाथ को मदद पहुंचाने के खयाल मे मैंने व्यर्थ ही इन्दु को बदनाम किया । इन्दुमति नि सन्देह सती और साध्वी है, उस पर कलक लगाने का नतीजा मुझे अच्छा न मिलेगा। अफसोस, खैर अव क्या करना चाहिये, जवान से जो वात निकल गई वह तो लौट नहीं मकतो तब? मुझे अपने बचाव के लिए शीन हो कोई तरकोव मोचना चाहिये। कहीं ऐसा न हो कि इन्दुमति कला और विमला धमती फिरती इस समय यहा या पहुंचे। यदि ऐसा हुग्रा तो बहुत ही बुरा होगा, मेरी कलई खुल जायगी और में तुरन्त ही जान से मारा जाऊँगा । यदि मैं उन सभी को वदनाम न किये होता ता इतना डर न था। इसी तरह की बातें सोचते हुए रामदास का दिल बही तेजी के साथ उछल रहा था । वह वडो वेचनी से प्रभाकरसिंह की सूरत देख रहा था। वहृत देर तक तरह तरह की बातें सोचते हुए प्रभाकरसिंह ने पुन नकली हरदेई से सवाल किया- प्रभाकर० । अच्छा यह तो वता कि कला और विमला किसी विषय