तीसरा हिस्सा + कर पुकारती ही रह गई मगर उन्होंने उसकी कुछ भी न सुनी । जिस | खिड़की की राह वे इस दीवार के अन्दर गये थे उसी राह से वाहर चले पाये और उस तरफ रवाना हुए जहां नकाबपोश और वैताल को लडते हुए छोह आये थे। वहां पहुंच कर प्रभाकरसिंह ने दोनो में से एक को भी न पाया, न तो वैताल ही पर निगाह पडी और न नकाबपोश हो की सूरत दिखाई दी। ताज्जुब के साथ प्रभाकरसिंह चारो तरफ देखने और सोचने लगे कि कही मैं जगह तो नही भूल गया, या वे दोनो ही तो आपुस में फैसला करके कही नही चले गये। कुछ देर तक इधर उधर ढूंढने के वाद प्रभाकरसिंह एक पत्थर को चट्टान पर बैठ गये और झुकी हुई गर्दन को हाथ का सहारा देकर तरह तरह की वात सोचने लगे। उन्हें इन्दुमति को त्याग देने का बहुत ही रंज था और वे अपनी जल्दबाजी पर कुछ देर के बाद पछताने लग गये थे। वे अपने दिल से कहने लगे कि अफसोस, मैंने इस काम में जल्दवाजी की। यद्यपि इन्दुमति की बदकारी का हाल सुन कर मेरे सिर से पैर तक प्राग लग गई थी मगर मुझे उसका कुछ सबूत भी तो ढूंढ लेना चाहिये था । सम्भव है कि हरदेई इन सभो की दुश्मन बन गई हो और उसने हम लोगों को रज पहुंचाने के खयाल में ऐसी मनगढन्त कहानी कह कर और इन्दुमति पर इल्जाम लगा कर अपना कलेजा ठण्डा किया हो। अगर वास्तव में यही यात हो तो कोई खास सवव जरूर है। अच्छा तो वह दूसरा भादमी कोन हो सकता है जिसने उस दीवार के अन्दर सरस्वती से बातचीत की थी? सम्भव है कि पैताल की तरह वह भी इन्दुमति जमना और सरस्वती का दुश्मन हो और मुझे सुनाने और धोसे में टालने के लिए उसने यह ढंग रचा हो। हो सकता है, यह कोई आश्चर्य की बात नही है । साग हो सके यह भी तो सोचना चाहिये कि अगर जमना और सरस्वती को ऐसा ही दुरा काम करना होता तो वे मुझे और इन्दुमति को अपने घर क्यों लाती और .
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