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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३१८

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तीसरा हिस्सा कुछ भी खवर नही' तब उस चिक के अन्दर से यह बारीक आवाज आई- "प्राखिर तुम यहां तक क्योंकर पहुचे?" नौजवान० ० । जब मेरी आँखें खुलों और मै होश मे पाया तो अपने को इसी वाग में एक रविश के ऊपर पड़े हुए पाया । उस समय वहाँ कई औरतें मौजूद थी जिन्होने मुझसे तरह तरह के सवाल किये और इसके बाद मुझे इस दीवानखाने में पहुचा कर वह सब न मालूम कहा चली गई। चिक के अन्दर से० । अच्छा अव तुम क्या चाहते हो सो वतायो ? नौजवान ० । पहिले तो मै यहां के मालिक का परिचय लिया चाहता हू । चिक के० । समझ लो कि यहां की मालिक मै हो हू । नौजवान० । मगर यह मालूम होना चाहिए कि आप कौन है ? चिक के० । मै एक स्वतन्त्र औरत हू, यहां की रानी कह कर मुझे सम्बोधन करते हैं। नौजवान० । श्रापका कोई मालिक या अफसर भी यहाँ नही है ? चिक के० । मैं एक राजा की लडकी हू, मेरा वाप मोजूद है और अपनी रियासत मे है, मुझे उसने इस तिलिस्म के अन्दर कैद कर रक्खा है मगर मैं अपने को यहाँ स्वतन्त्र समझती हू और खुश हूँ, दुख इतना ही है कि इस तिलिस्म के बाहर मैं नही जा सकती। नौजवान 01 आपके पिता ने पापको कंद क्यो कर रक्खा है ? चिफ के० । इसलिए कि मैं शादी करना मजूर नहीं करती और इसमे यह अपनी बेइज्जती समझता है। नौजवान ० । क्या आपका पीर प्रापके पिता का नाम मै सुन सकता है। चिफ पा० । नहीं, पहिले में पापका नाम सुनना चाहती है। नौजवान । मेरा नाम प्रभाकरसिंह है। चिका के० । है, गया पाप सच कहते है ? मुझे विश्वास नही होता!! प्रभाकर० । वेशक में सच कहता हूँ, भूठ बोलने की मुझे जररत ही पया है ? निक के० । घोर पापय पिता का नाम क्या है 7 '- 7