पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३२१

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भूतनाथ वाप के बराबर समझो और जब कभी सम्बोधन करने की जरूरत पडे तो नारायण के नाम से सम्बोधन किया करो अस्तु व हम भी आगे चल कर मौका पड़ने पर उसे नारायण ही के नाम से सम्बोधन किया करेंगे। जब मन्दिर की जालीदार दीवार के अन्दर से प्रभाकरसिंह ने जमना सरस्वती और इन्दुमति को देखा था और कुछ रूसी सूखी बातचीत भी की थी उस समय जो श्रादमी उन तीनो को मारने के लिए आया था और जिसे हम बैताल के नाम से सम्बोधन कर चुके है वह वास्तव में भूतनाथ ही था । प्रभाकरसिंह को तो उसके हाथ से उन तीनों की रक्षा करने के लिए वहां तक पहुंचने में दर लगी परन्तु नारायण ने बहुत जल्द वहा पहुच कर उस शैतान के हाथ से उन तीनो को बचा लिया । नारायण जानते थे कि वह वास्तव में भूतनाथ है और जमना सरस्वती तथा इन्दुमति को भी शक हो चुका था कि वह भूतनाथ है क्योकि जससे घटे हो भर पहिले वह तीनो से मिल चुका था और अपना विवित्र ढग दिखला कर अच्छी तरह धमका चुका था मगर उस समय उसे काम करने का मौका नहीं मिला था। यही सवव था कि उसकी सूरत देखते ही वे तीनो चिल्ला उठी और विमला (जमना) ने आंसू गिराते हुए चिल्ला कर प्रभाकरसिंह से कहा था-"बचाइए वचाइए, आप जल्दी यहा आकर हम लोगो को रक्षा कीजिये, यही दुष्ट हम लोगो के खून का प्यासा है।" इसके वाद जव प्रभाकरसिंह दूसरी पहाडी पर चढ कर ऊपर ही ऊपर वहा पहुचे तो देखा कि वैताल अर्थात् भूतनाथ से एक नकाबपोश मुकाबला कर रहा है । वही नकाबपोश नारायण था । नारायण ने वहां पहुंच कर उन तीनो औरतो को भाग जाने का इशारा करके भूतनाथ का मुकाबला किया और वटी खूबी के साथ लडा। जब प्रभाकरसिंह वहाँ पहुचे और नारायण के कहे मुताबिक जमना सरस्वती और इन्दुमति के पोछे चले तव पुन भूत- नाय और नारायण में लडाई होने लगी। भूतनाथ का कोई हर्वा नारायण फे वदन पर कारगर नहीं होता था वल्कि नारायण के मोढे पर बैठ कर भूतनाथ की तलवार टूट चुकी थी, अन्त में नारायण के हाथ से जख्मी 1