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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/४३

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भूतनाथ
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विमला० । (कुछ सोच कर) इस विषय में मैं कुछ नही कह सकती क्योकि अभी तक मैने तुम्हारी जुबानी तुम्हारा कुछ भी हाल नही सुना। मैं नही जानती कि तुम क्योकर घर से निकली, तुम पर क्या आफर्ते आई, और गुलाबसिंह ने तुम्हारे साथ क्या क्या सलूक किया। तथापि गुलाबसिंह पर शक करने की इच्छा नहीं होती क्योकि वह बड़ा नेक और ईमानदार आदमी है तथा हमारे घर के कई एहसान भी उसके ऊपर है यदि वह माने । यो तो आदमी का ईमान बिगड़ते कुछ देर नही लगती क्योकि आदमी का शैतान हर दम आदमी के साथ रहता है।

इन्दु० । ठीक है, अच्छा मैं भी अपना हाल कह सुनाऊंगी मगर पहिले यह सुन लूं कि मैं क्योकर यहाँ आई और क्योकर तुमने मुझे दुश्मनो के हाथ से बचाया।

विमला० । हा हा, मै कहती हूँ सुनो। अच्छा यह बताओ कि तुम उन दुश्मनो को जानती हो जिनके हाथ मे फंसी थी?

इन्दु० । नही बिल्कुल नही।

विमला० । वे महाराज शिवदत्त के आदमी थे ।

इन्दु० । ओफ ओह, जिसके खौफ से हम लोग भागे हुए थे । मगर अभी अभी तुम कह चुकी हो कि मैंने तुम्हें भूतनाथ के हाथ से बचाया है।

विमला० । हा बेशक वैसा भी कह सकते है क्योकि भूतनाथ तो हम लोगो का सबसे बड़ा दुश्मन ठहरा मगर इधर तुम शिवदत्त ही के आद- मियो के हाथ मे फंसी थी । इत्तिफाक मे हम लोग भी उसी समय वहा जा पहुँचे और लड़ भिड़ कर उन लोगो के हाथ से तुम्हे छुड़ा लाए, यही तो मुस्तसर हाल है।

इन्दु० । ( आश्चर्य मे ) तुममे इतनी ताकत कहा से आ गई कि उन लोगो मे लड़ कर मुझे छुटा लाई ?

विमला० । (मुस्कुराती हुई) हा इस समय मुझमें इतनी ताकत है। मेरे पास दो ऐयार है तथा बीस पचीस सिपाई भी रखती हूँ।