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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/५७

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भूतनाथ
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यहाँ तुम्हारे पास ले आऊंगा ।

विमला० । जी नही, ऐसा करने से मेरा भेद खुल जायगा । वह बड़ा ही काइया है, बात ही बात में आपसे पता लगा लेगा कि उसकी घाटी के साथ एक और स्थान है जहाँ कोई रहता है । अभी उसे यह मालूम नहीं।

प्रभाकर० । नही नही, मैं किसी तरह तुम्हारा भेद खुलने न दूंगा।

विमला० । अस्तु इस समय तो आप रहने दीजिए, पहिले जरूरी कामो से निपटिए, स्नान ध्यान पूजा पाठ कीजिए, भोजन इत्यादि से छुट्टी पाइए, फिर जैसी राय होगी देखा जायगा। मै कुछ इन्दु बहिन की दुश्मन तो हूँ नहीं जो उसे तकलीफ होने दूंगी बल्कि आप से ज्यादे मुझे खुटका लगा हुअा है । अगर वह यहाँ न आई तो मैने किया ही क्या ।

प्रभाकर० । खैर जैसी तुम्हारी मर्जी, थोड़ी देर के लिये ज्यादे जोर देने की भी अभी जरुरत नहीं है।

विमला० । अच्छा तो अब आप कुछ देर के लिए हम दोनो को छुट्टी दीजिए, मै आपके लिए खाने पीने का इन्तजाम करू, तब तक आप इस (उंगली का इशारा करके) कोठरी में जाइए और फिर बंगले के बाहर जाकर मैदान और कुदरती बाग में जहाँ चाहिए घूमिये फिरिये, मैं बहुत जल्द हाज़िर होऊगी। मगर आप इस बात का खूब ख्याल रखियेगा कि अब हम दोनो को जमना और सरस्वती के नाम से सम्बोधन न कीजियेगा और न हम दोनो घड़ी घड़ी जमना और सरस्वती की सूरत में आपको दिखाई देंगी हम दोनो का नाम विमला और कला बस यही ठीक है। इसके बाद और भी कुछ समझा बुझा कर कला को साथ लिए हुए विमला कमरे के बाहर चली गई ।

प्रभाकरसिंह भी उठ खडे़ हुए और कुछ सोचते हुए उस कमरे टहलने लगे। वे सोचने लगे-क्या जमना का कहना सच है ? क्या भूतनाथ वास्तव में गदाधरसिंह ही है ? फिर मैंने उसे पहिचाना क्यो नही ? सम्भव है कि रात का समय होने के कारण मुझे धोखा हुआ हो या उसी ने कुछ