पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१०४

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. [ १३ ] जसवंत निहास्यो । द्रोन सो भाऊ. करन्न करन्न सो और योदाओं के साथ उसके महल में तरकोव से घुस गए, और गड़बड़ में इन्होंने कई यवनों तथा शाइस्ताखाँ के लड़के को मार डाला। शाइस्ताखाँ जान बचाने को खिड़की से बाहर कूदने लगा कि शिवाजी ने दौड़ कर उसे एक सलवार मारी जिससे उसका सिर तो वचं गया, पर एक हाथ की कुछ उँगलियाँ कट गई, किन्तु वह भाग गया। लौटते हुए हजारों दुश्मनों के बीच से शिवाजी केवल उन्हीं २०० आदमियों के साथ मशाल जलाए. सिंहगढ़ चले गए। यह सन् १६६३ ईसवी का हाल है। शाइस्ताखाँ औरंगजेब का मामा था और पीछे वंगाल का गवर्नर हुआ था। १ जसवंतसिंह मारवाड़ के महाराज थे। ये शाइस्ताखों के साथ सन् १६६३ ई० में दक्षिण गये थे। कहते हैं कि ये गुप्त रोत्या शिवाजी से मिल गए. थे और इन्हों की सलाह से शाइस्ताखों की दुर्गति हुई। पहले तो औरंगजेब ने शाइस्ताखाँ व जसवंत सिंह दोनों को वापस बुला लिया था, परंतु पीछे से शाइस्ताखा को बंगाल का गवर्नर करके भेज दिया और जसवंत को शाहजादा मुअज्जाम की मातहती में फिर दक्खिन भेजा । जसवंतसिंह ने सन् १६६३ ई० में सिंहगढ़ घेरने का नाम मात्र प्रयल किया था, परंतु फिर उसे-छोड़ दिया । (देखो शिवावावनी छं० २८ “जाहिर है जग में जसवंत लियो गढ़ सिंह में गोदर पान)")। इन्हें सन् १६६५ में औरंगजेब ने वापस बुला लिया । १६८० में शरीरान्त कावुल को मुहीम में हुआ। २ बूंदी के छत्रसाल (बुंदेलखंड के नामो छत्रसाल नहीं ) के पुत्र भाऊसिंह । इतिहास में इनका किसी प्रसिद्ध युद्ध में शिवाजी से लड़ना नहीं पाया जाता, तो भी दक्षिण में ये औरंगजेब की ओर अवश्य गए थे और मप्रसिद्ध युद्धों में शिवानी से यह ज़रूर लड़े थे। ये बूंदी की गद्दी पर सन् १६५८ में बैठे थे और सन् १६८२ में औरंगा- बाद में इनका शरीरान्त हुआ। ३ बीकानेर के महाराज रायसिंह के पुत्र महाराज करन सन् १६३२ ई० में गद्दी पर बैठे और लगभग १६७४ तक राज्य करते रहे । श्नका दो हज़ारी मनसब था।