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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१३९

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[ ४८ ] • महराज सिवराज रस रोस तो हिये मैं एक भाँति पाइयतु है। दोहाई' कहे ते कबि लोग ज्याइयतु अरु दोहाई कहे ते अरि लोग ज्याइयतु है ॥१२८॥ दीपक लक्षण-दोहा वयं अबय॑न को धरम जहँ बरनत हैं एक । दीपक ताको कहत हैं भूषन सुकबि बिवेक ॥१२९।। उदाहरण-मालती सवैया कामिनि कंत सों जामिनि चंद सों दामिनि पावस मेघ घटा सों। कीरति दान सों सूरति ज्ञान सों प्रीति बड़ी सन- मान महा सों ।। भूषन भूषन सों तरुनी नलिनी नव पूषनदेव प्रभा सों। जाहिर चारिहु ओर जहान लसै हिंदुवान खुमान सिवा सौ ॥१३०॥ दीपकावृत्ति - लक्षण-दोहा दीपक पद के अरथ जहँ फिरि फिरि करत बखान । आवृति दीपक तहँ कहत भूषन सुकवि सुजान ॥१३१॥ १ दोहा (छंद ) कहने से। २ दोहाई करने से; शरण माने से। ३ सूर्य देवता।