पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२०७

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[ ११६ ] जजाति अम्बरीक सो । भूपन भनत तेरे दान-जल-जलधि में गुनिन को दारिद गयो बहि खरिक सो ॥ चंद कर किंजलक चाँदनी पराग उड़-बूंद मकरंद बुंद पुंज के सरीक सो। कुंद सम कयलास नाक-दंग नाल तेरे जस पुंडरीक को अक्रास चंच- रीक सौ ॥ ३४१॥ पुन:-दोहा महाराज सिवराज के जेते सहज सुभाय । औरन को अति उक्ति से भूपन कहत बनाय ।। ३४२ ।। निरुक्ति लक्षण-दोहा नामन को निज बुद्धि तो कहिए अरथ बनाय । • ताको कहत निरुक्ति हैं भूपन जे कविराय ।। ३४३ ।। उदाहरण-दोहा । कवि गन को दारिद दुरद याही दल्यो अमान । याते श्री सिवराज को सरजा कहत जहान ।। ३४४ ॥ हखो रूप इन मदन को याते भो सिव नाम । लियो विरद सरजा सवल अरि गज दलि संग्राम ॥ ३४५ ॥ १ रोजा; दाँत खोदने को लीक । तृण । २ कमल फूल के दोच में चारों जोर नो पोलो लौर सफेद सी सी होती है। ३ कुंद का होब सफेद फूल।