पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२१८

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उदाहरण-कवित्त मनहरण

अरिन के दल सैन' संगर मैं समुहाने टूक टूक सकल के डारे घमसान मैं । बार वार रूरो महानद परवाह पूरो बहत है हाथिन के मद जल दान में ।। भूपन भनत महा बाहु भौसिला भुवाल लूर, रवि कैसो तेज तीखन कृपान मैं। माल मकरंद ज़ के नंद कला निधि तेरो सरजा सिवाजी जस जगत जहान में ॥ ३६६ ॥

चित्र
लक्षण-दोहा

लिखे सुने अचरज बढ़े रचना होय विचित्र । कामधेनु आदिक घने भूपन बरनत चित्र ।। ३६७ ।। उदाहरण ( कामधेनु चित्र ) । माधवी सवैया १ शयन ( में ) संग रग अर्थात् साथ हो साथ मरे पड़े हैं। २ मीर। ३ जागता है। ४ इस सवेया में “वमुमा" अर्थात् आठ सगण होते हैं। सगण के तीन अक्षरों में प्रथम दो लघु और अंतिम गुम होता है। देवजी एक दूसरे प्रकार की सवैया को माधवी कहते है और आठ सगण वाली सवैया का वर्णन नहीं करते। कविराज श्री नुखदेव मिश्र उसी सर्वया को “वाम" कहते हैं और इस "वनुसा वालो का नाम उन्होंने माधवी लिखा है। भपण जी का यह कामधेनु चित्रवाला छंद विलकुल अच्छा नहीं । इसमें ७४४२८ छंद अवश्य बनते है । ऐसे छंद. प्रायः अच्छे हो भी नहीं सकते। .