[ १६६ ] साजिदल सहज सितारा महराज चलै वाजत नगारा बढ़े धाराधर' साथ से । राय उमराय राना देसदेस पति भागे तजि तजि गढ़न गढ़ोई दसमाथ' से । पैग पैग होत भारी डावाँ डोल भूमिगोल पैग पैग होत दिग मैगल अनाथ से। उलटत पलटत गिरत झुकत उझकत सेस फन वेद पाठिन के हाथ से ॥ १२ ॥ - जुद्धको चढ़त दल बुद्ध को जसत तव लंक लौं अतंकन के पतर पतारे से । भूपन भनत भारे चूमत गयन्द कारे वाजत नगारे जात अरि उर छारे से । वस के धरा के गाढ़े कोल की कडाके डा. आवत तरारे दिग पालन तमारे से। फेन से फनीस फन फुटि विप छूटि जात उछरि उछरि मनो पुरवै फुहारे से ।। १३ ।। रहत अछक पै मिटे न धक पीवन की निपट जु नाँगी डर काहू के डरै नहीं। भोजन बनावै नित चोख्ने खानखानन के सोनित पचावै तऊ उदर भरै नहीं ॥ उगिलत आसौतऊ सुकल१० समर वीच राजै रावबुद्ध कर विमुख परै नहीं। १ मेघ गर्जन से नगाड़े बजते हैं। २ रावण से प्रतापी गढ़पति मी मागे । ३ भूगोल पर । ४ यश प्राप्त करता है । ५ शत्रुओं की पंक्तियाँ पत्नों सी पतली हो जाती हैं। ६ पृथ्वी के धसकने से दली वराह की ढाई कड़कती (टूटती) हैं। ७ दल के तरारे (दरेरे, धावा ) से दिग्पाल को ताई (अँधेरा छा नाना, वेहोशी ) सी आती है। ८ वड़ो चोप ९ आसव, मदिरा। तलवार के लिये लाल रंग का खून; क्योंकि उत्तम मद्य मो लाल रंग का माना गया है। १० सफेद । ११ छत्रसाल हाड़ा वूदी नरेश के माई भीमसिंह के पौत्र अनिरुद्धसिंह थे। राव
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