पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/५८

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[ ४९. ] __ इस चक्र के देखने से विदित होता है कि शिवराज-भूपण में भूपणजी ने सन् १६५७ के ३ छन्द, १६५९ के १०, १६६२ के ५, १६६३ के८, १६६५ के २, १६६६ के १२, १६७० के १०, १६७२ के. १५ छंद और १६७३ के ११ कहे हैं। सन् १६४८, १६५५, १६५८, १६६६, १६६६ तथा १६७१ के भी एक एक छन्द हैं तथा १६७२ के दो। ____ अब हम शिवराज भूपण के समय संबंधी उपर्युक्त चारों प्रश्नों पर विचार करते हैं। (१) यह अनुमान यथार्थ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि भूपण के अधिकांश उदाहरणों में एक एक छंद में वही अलंकार कई कई बार आया है और सिवा उसके दूसरा अलंकार स्पष्ट रूप से नहीं आने पाया है। फिर प्रत्येक अलंकार अपने उदा- हरण में बड़े ही स्पष्ट रूप से निकलता है और किसी के निका- लने में क्लिष्ट कल्पना नहीं करनी पड़ती । अन्य अधिकांश आचार्यों के उदाहरणों में ऐसी स्पष्टता कम पाई जाती है । अतः कोई यह नहीं कह सकता कि भूपणजी के उदाहरण अलंकारों के लिये नहीं बनाए गए थे और उनमें अलंकार आप ही आप निकल आए। वे स्वयं कहते हैं- "शिव-चरित्र लखि यों भयो कवि भूपण के चित्त। भाँति भाँति भूपनन सों भूपित. करौं कवित्त" ।। (२) यह अनुमान कुछ कुछ यथार्थ जान पड़ता है । इस के कारण पीछे लिखे जायेंगे। . . . .