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भ्रमरगीत-सार
 

जाकी मनि हरि लई सीस तें कहा करै अहि मूक?
सूरदास ब्रजबास बसीं हम मनहूँ दाहिने सूक[१]


राग कल्याण
ऊधों! जोग जानै कौन?

हम अबला कह जोग जानैं जियत जाको रौन[२]
जोग हमपै होय न आवै, धरि न आवै मौन।
बाँधिहैं क्यों मन-पखेरू साधिहैं क्यों पौन?
कहौ अंबर पहिरि कै मृगछाल ओढ़ै कौन?
गुरु हमारे कूबरी-कर-मंत्र-माला जौन॥
मदनमोहन बिन हमारे परै बात न कौन[३]?
सूर प्रभु कब आयहैं वे श्याम दुख के दौन[४]?॥१६२॥


राग केदारो
फिर ब्रज बसहु गोकुलनाथ।

बहुरि न तुमहिं जगाय पठवौं गोधनन के साथ॥
बरजौं न माखन खात कबहूँ, दैहौं देन लुटाय।
कबहूँ न दैहौं उराहनो जसुमति के आगे जाय॥
दौरि दाम न देहुँगी, लकुटी न जसुमति-पानि।
चोरी न देहुँ उघारि, किए औगुन न कहिहौं आनि॥


  1. दाहिने सूक=इक्षिण शूक्रग्रह होने पर (जो ज्योतिष में बुरा योग माना जाता है)।
  2. रौन=रमण करने वाला, पति।
  3. परै......कौन=कोई बात मन में नहीं पड़ती अर्थात् बैठती।
  4. दौन=दमन करनेवाले।