पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२२८

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शिव की पुरी। [२२] मही=मट्ठा। [२३] हाटक=सोना। साहु=महाजन। दाख=द्राक्षा, अंगूर। [२४] मुक्ताहल=मुक्ताफल, मोती। निरबै हे=साधेगा। [२५] बनजारा=व्यापारी, सौदागर। गति=शरण। पति=प्रतिष्ठा। राँड़े=जिनके और कोई न हो, एकाकी। [२६] लोक॰=लोक मर्यादा। कुल॰=कुल की प्रतिष्ठा। [२८] नातरु=नहीं तो। बरनहीन=हीनवर्ण। [२९] सागर निधि=महासमुद्र। कुलिस=वज्र। [३१] सूर=शूर, वीर; सूरदास। [३२] अनत=अन्यत्र। [३५] मुँडली=जिसके सिर में केश न हों। पाटी पारना=माँग काढ़ना। कौन पै=किससे। नरियर॰=भेंट के लिए आप जो योगरूपी विषैला नारियल लाए हैं उसे प्रणाम ही करते बनता है। [३६] सिरात=ठंढा होता है। हार्‌यो=हर लिया। आई॰=जैसे आम की खटाई से कलई खुल जाती है वैसे ही प्रेम का भेद खुल गया। बिलग॰=बुरा मत मानो। भँवारे=घूमनेवाला। पखारे=धोए। ता गुन=इसी से। [४०] हित-हानि=प्रेम का त्याग। [४१] काहि जोग=किसके योग्य। [४२] राची=अनुरक्त। सिकत=सिकता, बालू। [४३] काके॰=किसे जँचेगा। [४४] बदन=मुख। बपु=शरीर। सहाई=सहायक, मित्र। [४६] हित=हेतु, निमित्त। अयानि=अज्ञान। छाजन=स्वाँग। सरत=बढ़ता है, लपकता है। भाजन=भागना, जाना। [४७] दाप=दर्प, रोब। [४८] सीस=सिर पर, निकट। [५१] दसहि=दशा को। तिसहि=उसे। [५२] सौं तुख=प्रत्यक्ष। [५३] अवरोधन॰=प्राणायाम। [५५] नइ=नीति। जाति॰=खो जाती है। आरति=आर्ति, दुःख; यहाँ अप्रतिष्ठा का खेद। [५७] ताती=गरम। सँघाती=साथी। [५८] तरल=चंचल, हिलते हुए। तरिवन=ताटंक, कान का गहना। [५९] तर=नीचे। [६१] पचत=परेशान होता है। कहा उघारे=खोलने से क्या लाभ। बिलमावत=रोकते हो, आराम देते हो। कापै=किससे। [६२] राजपंथ=राजमार्ग, (सगुण का) चौड़ा रास्ता। धौं=कदाचित्। सुमृति=स्मृति शास्त्र। कहूँ धौं=कहीं भी। छाछ=मट्ठा।