सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०२
मतिराम-ग्रंथावली

 

खंडिता नायिका

व्रजभाषा के कवियों ने खंडिता नायिका के बड़े ही मनोहर वर्णन किए हैं। कविवर बिहारी, देव तथा सूरदास के खंडिताओं के चित्र जैसे कुछ बन पड़े हैं, वह अनुभव करने ही की बात है, कहने की नहीं। महाकवि मतिराम ने भी खंडिता नायिका को लेकर कई ऐसे भाव-चित्र खींचे हैं, जो अनुपम हैं। उपलब्ध सतसई की प्रति से हम यहाँ चार उदाहरण देते हैं—

(१) नायक ने नायिका के नेत्रों का चुंबन किया। ऐसा करने से उसके ओष्ठ में आँख का काजल लग गया है। उसे यह विदित नहीं। ओठ में वैसे ही काजल लगाए प्रातःकाल वह अपनी स्त्री के सामने उपस्थित हुआ। उसने नायक महोदय के अन्यत्र रमण की बात जान ली। नायक के अपराध को वह बड़ी ही मामिकता के साथ प्रकट करती है। कहती है—देखिए-देखिए प्राणनाथ, आनन-कमल के अरुण अधर दल पर एक भौंरा आ बैठा है। इसे जल्दी से उड़ा दीजिए, नहीं तो यह काट ही खायगा। पर वहाँ भौंरा कहाँ? इशारा तो काजल के दाग़ की ओर है, नायिका अपनी अबोधता का बहाना करती हुई मानो यह दिखलाती है कि उसे कज्जल-दाग में भ्रमर का भ्रम हुआ है। इस प्रकार वह प्रकट रूप में नायक को लज्जित भी नहीं करना चाहती, साथ ही उसको उसकी करतूत भी सुझा देना चाहती है। कैसी रसीली चुटकी है!

"बैठ्यो आनन-कमल के अरुन अधर-दल आय;
काटन चाहत भावते, दीजै भौंर उड़ाय।"

(२) ऊपर के भाव को और भी अधिक स्पष्ट रीति से मतिरामजी ने दूसरे दोहे में भी प्रकट किया है, पर 'भ्रांति' का आश्रय लेकर पहले दोहे में जो चमत्कार उत्पन्न किया गया है, वह उपमा के सहारे दूसरे दोहे में नहीं आ सका। यहाँ बात बहुत खोलकर कह दी गई है—