काव्य-कौशल के नमूने
(१)
"बारि के बिहार बर बारन के बोरिबे को
बारिचर बिरची इलाज जय-काज की;
कहै 'मतिराम', बलवंत जलजंतु जानि
दूरि भई हिम्मति दुरद-सिरताज की।
असरन-सरन के चरन - सरन तके,
तैसे दीनबंधु निज नाम की सुलाज की;
धाए रति मान अति आतुर गोपाल, मिली
बीच ब्रजराज को गरज गजराज की।"
पिंगल—घनाक्षरी या मनहरण-छंद। यति नियमानुसार १६ और १५ वर्ण पर।
अर्थ—एक बड़ा हाथी जल में विहार कर रहा था। यहीं एक बड़ा ग्राह रहता था। इसने हाथी के डुबोने का उद्योग किया। हाथी डूबने लगा। उसकी हिम्मत छूट गई। जब उसे और कोई उपाय न सूझा, तो उसने अशरण शरण भगवान् के चरणों का ध्यान किया। भगवान् ने भी अपने दीनबंधु नाम की रक्षा की। अभी हाथी की विपत्ति-पुकार उन तक पहुंची भी न थी कि वह उसकी रक्षा के लिये दौड़ पड़े। व्रजराज को गजराज की विपत्ति-गर्जन आधे मार्ग में ही सुन पड़ी। यही उपर्युक्त छंद का संक्षिप्त भावार्थ है। इस पद्य में हाथी के लिये बारन, दुरद और गजराज, इन तीन शब्दों का प्रयोग हुआ है। बारन शब्द से हाथी की शक्तिमत्ता और अभिमान का भाव टपकता है। जिस समय हाथी जल-केलि के लिये पानी में घुसा था, उस समय उसमें ये ही भाव प्रधान थे। परंतु जब ग्राह ने उसे पकड़कर खींचा, और उद्योग करने पर भी वह अपने को न छुड़ा सका, उस समय उसकी दशा दीन हो गई। वह किसी के आगे दाँत