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मतिराम-ग्रंथावली


में निर्वाह हो सकनेवाले अलंकारों का भी उल्लेख करते हैं, क्योंकि "अलंकारः एव काव्यं प्रधानमिति प्राच्यानां मतम्"।

१. सम-नायिका उपमेय पट उपमान की समान छवि के उल्लसित होने से इसमें उपमालंकार होता है।

२. सार-पहले नायिका ने नायक का स्वप्न में दर्शन किया, परंतु यह दर्शन सत्य न था, फिर भी इससे नायिका को आनंद हुआ। इसके बाद सखी ने नायिका को जगाकर नायक के आगम का सच्चा समाचार सुनाया, इससे हर्ष में उत्कर्ष हुआ। तदुपरांत नायिका का नायक के साथ साक्षात्कार भी हो गया, और हर्ष अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया। हर्ष का उत्तरोत्तर उत्कर्ष होने से सार-अलंकार स्पष्ट हो जाता है।

३. प्रहर्षण-"यहाँ निरंतरता से स्वप्न, श्रवण और प्रत्यक्ष दर्शन होने से नायिका को अकस्मात् परमानंद हुआ है, इसलिये प्रहर्षण- अलंकार है ।" जसवंत-जसोभूषण, पृष्ठ ४५४ ।

४. लोकोक्ति-तीन बार डुबाने से रंग अच्छा चढ़ता है। यह लोकोक्ति का रूप है।

५. रूपक-'बैन पियूष-निचोरे' में 'बैन पियूष' पद रूपक का द्योतक है।

६. हेतु-बाल और बालम के दृग जुड़ने से हृदय में आनंद हुआ, सो यहाँ 'हेतु' और 'हेतुमान' दोनो उपस्थित रहने से हेतु- अलंकार हुआ।

७. असंगति-दृगों के जुड़ने से दृगों को आनंद होना चाहिए था, परंतु आनंद हुआ हृदय को, अर्थात् कारण अन्यत्र और कार्य अन्यत्र घटित हुआ, यह असंगति का रूप है।

८. वृत्त्यनुप्रास-प्रानपियारो, नेसुक नींद-निहोरे और चटकीलो चढ़े में वृत्त्यनुप्रास है।