पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/१७०

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मतिराम-ग्रंथावली antonanesalganes-sudemier पवित्र और शुभ अवसर पर ही होता है । उसमें स्वागत का भी निर्देश है । कार्य में सफलता की भी संभावना है। नायिका द्वारा शय्या तथा अपने शृंगार का सामंजस्य भी इसी बंदनवार में है। नेत्रों का दरवाजे पर बंदी होकर विवशता-वश ठहरना कुछ भद्दा मालूम होता है; परंतु बंदनवार-रूप में स्वागत के लिये वहाँ उनकी उपस्थिति एक सद्गृहस्थ के अनुरूप ही है । marnatavadkoommornoimmensens Dow नरहरि और मतिराम "नरहरि कबि ते गऊ को बिनती को सुनि है गए अकब्बर सबीह - जैसे नकसी ; दीन्हो है हुकुम करवाय आम-खास-बीच, बंद भयो गो-बध खबरि फेरि बकसी। फैलि गयो सुजस दिलीप लौं जहाँन-बीच, हिंसक समाज बैंठि बोलें अकबकसी; . आनंद कसाइन को गाइन को दीन्हो, अरु गाइन की मौत सो कसाइन को बकसी।" उपर्युक्त छंद एक ऐतिहासिक घटना के आधार पर बना है। नरहरि कवि ने "अरिह दंत तृन धरहि" इत्यादि छप्पय लिखकर और गाय के मुख में दबाकर अकबर बादशाह के सामने भेजा था। कहते हैं, बादशाह पर उसका इतना असर पड़ा कि उसी दिन से उन्होंने अपने राज्य में गोवध बंद करा दिया। बादशाह की उसी आज्ञा का उल्लेख उपर्युक्त छंद में है। हम निश्चय-पूर्वक नहीं कह सकते कि छंद किसका निर्मित है। अधिकतर प्रसिद्ध यह है कि उप- र्युक्त छंद भी नरहरि-कृत ही है, जो उन्होंने अपने मनोरथ के सफल होने पर बनाया था। जो हो, यदि इस छंद की रचना कवि मतिराम के कविता-काल के पहले हुई है, तो मतिरामजी ने ललित ललाम में,