पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२०१

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Invesh n रहाATIONS समीक्षा १९७ "बरखा-सी लागी निसि-बासर बिलोचननि, बाढ्यो परबाह, भयो नावबि उतरिबो; रह्यो जात कौन पै सुकबि 'मतिराम' अब, बिरह-अनल-ज्वाल-जालनि ते जरिबो। जैयत समीप, तौ उडैयत उसासन सों, हमको तौ भयौ उत हेरत हहरिबो; कियो कहा चाहत, सो कहौ न कुँवर कान्ह, रह्यौ अब वाको उपचारनि को करिबो।" (मतिराम) मतिराम के छंद में नौका-शरीर की कमी है, तो शेक्सपियर के वर्णन में विरहानल-ज्वाला का अभाव है। शेष सामग्री प्रायः समान ही है। विरह-निवेदन-रूप में सखी द्वारा नायिका की इस व्याधि- दशा का नायक से बड़ा ही अनूठा वर्णन है। इसमें स्वाभाविकता है। उधर शेक्सपियर ने जूलियट की वैसी दशा का वर्णन कैपूलेट से करवाया है। भारतीय समाज-आदर्श के अनुसार पिता अपनी पुत्री का वर्णन इस प्रकार करने में अक्षम है। बिहारीलाल ने अपने एक दोहे में इस भाव को खूबी से दिखलाया है- "प्रगटयौ आगि बियोग की, बहयो बिलोचन नीर; आठौ जाम हियो रहै उड्यौ उसास-समीर । (बिहारी) रवींद्रनाथ टैगोर और मतिराम "जीवन-धन, मम प्रान-पियारो सदा बसत हिय मेरे ; जहाँ बिलोकै, ताकै ताको, कहा दुरि, कहँ नेरे । आँखिन की पुतरिन मैं सोई सदा रहै छबि घेरे; सुनन मधुर सुर गई दूरि कछलौटी अपने डेरे।