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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३३०

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मतिराम-ग्रंथावली

३२६ ना rmatirtansemips MINS मतिराम-ग्रंथावली बाल रही इकटक निरखि लाल बदन अरबिंदु । सियराई नैनन परी, पियराई मुख इंदु ॥३३॥ अश्रु-लक्षण हरष, दुःख, भय आदि तें जल आवे अँखियान । ताहि बखानत आँसु कहि ग्रंथन को मत जान ॥३३३।। उदाहरण बैठे हुते लाल मनमोहन छबीली बाल, छिनक सकोच राख्यौ गुरुजन भीर को ; कबि 'मतिराम' दीठि और की बचाय देखै, देखत ही औरै भय राखै अब धीर को। तन को न मोह धरै मन की खबरि भूली, आँखिन मैं छायो पूर आनंद के नीर को ; उमँगि हिए तैं आयो प्रेम को प्रबाह तातें, लाज गिरि गई जैसे तरुबर तीर को ॥३३४॥ बिन देखे दुख के चलें, देखें सुख के जाहिं।। कहौ लाल इन दृगन तैं, अँसुवा क्यौं ठहराहिं ? ३३५।। प्रलय-लक्षण जीवित तनु मैं होत है ईहा सकल निरोध । हर्ष, दुःख, भय आदि तै प्रलय कहत मतिसोध ।।३३६॥ mano SHREE AME media thintainstreams १ चंद, २ अश्रु, ३ मोहनी, ४ परी । छ० नं० ३३४ पूर=बाढ़ । छं० नं० ३३५ बिन देखे दुख के चलें ठहराहि=वियोग-दशा में तो दुःख के कारण अश्रुप्रवाह जारी रहता है और संयोग-दशा में सुख के आँसू बहने लगते हैं। हर हालत में आँसू जारी रहते हैं। कहिए लालजी, इनके रोकने की तरकीब क्या है ?