पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३४०

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३३६ मतिराम-ग्रंथावली लघुमान-लक्षण और बाल कौं लखत जहँ, लखै कंत कौं बाल । बरनत हैं लधुमान सो छूटत तनकहि' ख्याल ॥ ३८६ ।। उदाहरण देखत और तियाहि छबीले कौं मान छबीली के नैनन छायो ; प्रीतम यों चतुराई करी 'मतिराम' कछ परिहास बढ़ायौ । रीति रची बिपरीति ज प्रीति सौं ताको कबित्त बनाय सुनायौ; भूलि गई रिस लाजन तैं मुसकाय पिया मुख नीचे कौं नायौ। ३८७ ॥ मानु जनावति सबनि कौं मन न मान को ठाट । बाल मनावन कौं लखै लाल तिहारी बाट ॥ ३८८ ।। मध्यममान-लक्षण पिय मुख औरहि नारि को सुनै नाँव जब नारि। होत मान मध्यम तहाँ, बरनत सुकबि बिचारि ॥ ३८९ ।। उदाहरण दोऊ अनंद सौं आँगन माँझ बिराजै असाढ़ की साँझ सुहाई ; प्यारी कौं बूझत और तिया को अचानक नाँउ लियो रसिकाई। आयौ उनै मुँहु मैं हँसी, कोपि प्रिया सुर-चाप-सी भौंह चढ़ाई; आँखिन तें गिरे आँसू के बूंद, सुहासु गयो उड़ि हंस की नाँई ।। ३९० ॥ १ नेकहि, २ देखत औरै तिया पिय को लखि, ३ प्रीतम, ४ तिया, ५ और, ६ जहँ, ७ आनंद सों दोउ, ८ कोह, ९ तिया, १० सर-चाप । छ० नं० ३८७ रीति रची विपरीति जुप्रीति सुनायौ जो विपरीत काम-कलोल हुई थी, उसका छंदोबद्ध वर्णन पढ़ सुनाना । मुख नीचे कौं नायौ=मुख नीचे कर लिया। छं० नं० ३९० प्यारी रसिकाई प्यारी से बातचीत करते-करते रसिकता की झोंक में नायक अचानक अपनी दूसरी प्रेयसी का नाम ले बैठा । सुर-चाप=इंद्र-धनुष । Badlaptodecipan rama D RELAPadasocial Pracheonam