सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६४ diaitayaily n teentersti मतिराम-ग्रंथावली परिणाम-लक्षण बिषयी-विषय अभेद सौं, जहाँ करत कछु काज । बरनत तहँ परिनाम हैं, कबि-कोबिद-सिरताज ॥ ७५ ॥ __उदाहरण बाजत नगारे जहाँ, गाजत गयंद तहाँ, सिंह-सम कीनो बीर संगर बिहार हैं ; कहै 'मतिराम' कबि लोगनि कौं रीझि करि, दीने ते दुरद जे चुवत मदधार हैं। सत्रुसालनंद राव भावसिंह तेग त्याग, तोसे और औनितल आज न उदार हैं ; हाथिन बिदारिबे कों हाथ हैं हथ्यार तेरे, दारिद बिदारिबे कों हाथिए हथ्यार हैं ॥ ७६ ॥ द्विविध उल्लेख-लक्षण कै बहुतै कै एक जहँ, एकहि को उल्लेख । बहुत करत उल्लेख तहँ, कहत सुकबि सबिसेख ॥ ७७ ।। प्रथमोदाहरण कबिजन कलपद्म कहैं, ज्ञानी ज्ञान-समुद्र । दुरजन के गन कहत हैं, भावसिंह रन-रुद्र ॥ ७८ ॥ द्वितीयोदाहरण सत्ता को सपूत राव संगर को सिंह सो है, जैतवार जगत करेरी किरवान को ; छं० नं० ७६ औनितल अवनीतल, पृथ्वी पर । हाथिनहथ्यार= भावसिंह ऐसा शक्तिमान् है कि अपनी भुजाओं के बल से हाथी मार डालता है; और लोगों की दरिद्रता को हाथियों का दान देकर नष्ट कर डालता है।