सरदार कवि का मत
सरदार कवि ने अपने 'साहित्य-सुधानिधि' ग्रंथ के आरंभ में, प्रश्नोत्तर-रूप में, इस बात पर, विवाद किया है कि रसराज कौन है? आपकी दलील का सारांश इस प्रकार है—श्रृंगार-रस के देवता कृष्ण माने गए हैं। कृष्ण और विष्णु एक ही हैं, मगर संसार की सृष्टि के सर्वस्व कामदेव के साथ विष्णु की अपेक्षा कृष्ण का अधिक संपर्क है। विष्णु से कृष्ण में इतनी अधिकता है। विष्णु, ब्रह्मा और रुद्र, ये सभी समान प्रभाववाले हैं। फिर भी राजा वही बनाया जाता है, जिसका काम पालन हो। यह काम विष्णु और कृष्ण बराबर कर सकते हैं; परंतु कृष्ण में विष्णु से कुछ विशेषता है, इसलिये वही रसराज के देवता माने गए। श्रृंगार के देवता कृष्ण बनाए गए, इसका अभिप्राय यह है कि इसका प्रभाव सृष्टि-स्थिति बनाए रखनेवाला माना गया है। यह एक बहुत बड़ी विशेषता है। इसी के कारण श्रृंगार रसराज मान लिया गया। सरदारजी की राय है कि श्रृंगार में सब संचारी पाए जाते हैं। इस कारण भी वह सबसे बड़ा है। सारा संसार प्रकृति और पुरुष की क्रीड़ा का रंग-स्थल है। इसी के प्रतिबिंब के समान इस रस में नर-नारी की उचित प्रीति का वर्णन है, इसलिये भी वह रसराज है। उद्दीपन दो प्रकार के होते हैं—दैवी और मानुषी। ऋतु-रमणीयता आदि दैवी उद्दीपन हैं। और रसों के उद्दीपन अधिकतर मानुषी हैं; पर शृंगार के मानुषी और दैवी दोनो हैं। इसके उद्दीपन सर्वत्र और बारहो मास सुलभ हैं। इसी से यह रसराज है। इसके विरोधी रसों का भी इसके साथ मित्रवत्व र्णन किया जा सकता है। अन्य रस इसके अंगी बनाए जा सकते हैं। इससे भी श्रृंगार की प्रमुखता प्रमाणित होती है।
संस्कृत के कवियों का मत
संस्कृत के प्रायः सभी आचार्यों ने रसों का वर्णन करते समय