इसी नवोढ़ा में जब प्रियतम के प्रति प्रतीति का कुछ भाव बढ़ जाता है, तो वह विश्रब्ध नवोढ़ा के नाम से प्रसिद्धि पाती है। वैसीं दशा में उसका कथन है-
प्रीतम, तुमरी सेज पै हौं आवत नंदलाल;
दया गहौ, बात न कहौ, दुख न दीजिए लाल।
दस अवस्था भेद से मतिरामजी ने भी दस प्रकार की नायिकाएँ मानी हैं। हम तो यहाँ केवल मुग्धा के ऐसे दस भेद दिखलावेंगे।
प्रियतम के आने का निश्चय जानकर श्रृंगार करके जो मुग्धा सुंदरी अपना मनोरथ सफल करने के लिये तैयार रहती है, उसे 'वासकसज्जा' कहते हैं। हम देखते हैं कि केलि भवन जाकर वह—
"पौढ़ि रही छिन सेज तिय अति आनंद अधिकाय।"
शय्या पर पड़ी तो है, परंतु प्रिय के तब तक न आने के कारण चिंतित होती हुई उसकी यह दशा होती है कि—
"चंद बढ्यो उदयाचल पै, मुख चंद पै आनि चढ़ी पियराई।"
प्रिय-आगमन की उत्कंठा के कारण ही वह उत्कंठिता नायिका कहलाती है।
उत्कंठिता की उत्कंठा यों ही छोड़िए। देखिए, अब तो यह स्वयं अपने पतिदेवता से अन्यत्र मिलने जा रही है। उसके इस अभिसार-कौतूहल को देखकर ही उसे अभिसारिका की संज्ञा मिली है। जा तो रही है, पर मुग्धत्व के वश इस अभिसार में उसकी जैसी दशा है, वह देखते ही बनती है—
अली चली नवलाहि लै पिय पै साजि सिंगार;
ज्यों मतंग अँड़दार को लिए जात गँड़दार।
संकेत-स्थान में जाकर भी जब प्रियतम के दर्शन न हुए, तो उसने दीनता से चंद्रमा की ओर देखा। आह! अब तो—
"नवल बाल को कमल-सो गयो बदन कुँभिलाय।"