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मतिराम-ग्रंथावली


दुहूँ ओर मुख दुहुनि के, बिधु लौं करत प्रकास ।

लाज-अँध्यारी दुहुनि कीं, कहूँ न पावति बास ॥६८८।।

कौन भाँति के बरनियै, सुंदरता नँदनंद ।

वाके मुख की भीख लै, भयो ज्योतिमय चंद ॥६८९॥

दिन में सुभग सरोज हैं, निसि में सुंदर इंदु ।

द्योस-राति हूं चारु अति, वाको बदन गोबिंद ॥६९०।।

दियो दरस कीनी भली, मोहन नंदकुमार।

भयो बन्यो मुकतानि कौं, अंग-अंग सिंगार ॥६९१॥

लसत रतन दरपन बिमल, तो कपोल बस नारि ।

सनमुख रहि जो भाल में, लीजै तिलक सँवारि ॥६९२।।

सुनत सदा गुरु बचन हित, रहत बिबुध गन साथ।

भोगनाथ यह जानियत, सदा भूमि सुरनाथ ॥६९३।।

सरनागत पालक महा, दान जुद्ध अति धीर ।

भोगनाथ नरनाथ यह, पग्यो रहत रस बीर ॥६९४||

भोगनाथ नरनाथ के, लोचन लखत बिसाल ।

रहत गरीबी गहि दुहनि, नीबी गहि बर बाल ॥६९५॥

जगत जगत दोऊ भूजा, जग्य-रूप के रूप ।

भोगनाथ नरनाथ की, भौंह निहारत रूप ॥६९६॥

जब लौं सजनी बोलियै, ये गरबीले वैन ।

जब लगि तुम निरखे नहीं, भोगनाथ के नैन ॥६९७।।

तुरग अरब ऐराक के, मनि आभरन अनूप ।

भोगनाथ-सों भीख लै, भए भिखारी भूप ॥६९८।।

भोगनाथ नरनाथ की, रीझ्यो खीझ अनूप ।

होत भिखारी भूप है, भूप भिखारी रूप ॥६९९।।

मुरलीधर गिरिधरन प्रभु, पीतांबर घनस्याम।

बकी बिदारन कंस अरि, हरन अभिराम ॥७००।

पीत झंगुलिया पहिरि के, लाल लकुटिया हाथ ।

धूरि भरे खेलत रहे, ब्रजवासिन ब्रजनाथ ॥७०१॥