पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१५३

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(१०२) सर डब्ल्यू डब्ल्यू० हंटर ने लिखा है कि भारतीय दर्शन में ज्ञान और कर्म की, धर्म और अधर्म की समस्या; जड़ चेतन और आत्मा की समस्या, स्वतंत्रकर्तृत्व और परतंत्रता का विचार, ईश्वर और जीव की समस्या, तथा अन्य विचारणीय प्रश्न, जैसे पुण्य, पाप, जीवन में सुख दुःख का विपम विभाग आदि पर भी बहुत विचार किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, व्यवस्था और विकास के संबंध में भिन्न भिन्न कल्पनाएँ प्रादुर्भूत हुई थीं। वर्तमान विद्वानों के विचार कपिल के विकास सिद्धांत का बढ़ाया हुआ रूप ही है। श्रीमती डाक्टर बेसेंट लिखती है भारतीय मनोविज्ञान यूरो- पीय मनोविज्ञान से अधिक संपूर्ण है। प्रोफेसर मैक्स डंकर ने लिखा है कि हिंदुओं की तार्किक गवेष- णाएँ वर्तमान समय की किसी जाति के तर्कशास्त्र से कम नहीं है।। एक ब्राह्मण में लिखा है ज्योतिष अन्य शास्त्रों की तरह ज्योतिप शात्र भी भारत में प्राचीन काल से अत्यंत उन्नत था। वेदों में ज्यातिप के बहुत ऊँचे सिद्धांतों का वर्णन मिलता है। ज्योतिप शास्त्र की कि सूर्य वस्तुतः उदय और अस्त नहीं होता, पूर्घकालीन उन्नति परंतु पृथ्वी के घूमने से दिन रात होते हैं । प्राचीन काल में यज्ञ यागादि की अधिकता होने से उसके लिये नक्षत्र और काल-निर्णय का ज्ञान सर्व-साधारण में भी प्रचलित था। ज्योतिष भी वेद का एक अंग माना जाता था, जिससे इसका अध्ययन बहुत

  • हंटर; इंडियन गैजेटियर; इंडिया; पृ० २१३-१४ ।

। लैक्चर प्रान नेशनल यूनिवर्सिटीज इन इंडिया ( कलकत्ता) जन- वरी १६०६। + हिस्ट्री श्राफ एंटिविटी; जि० ४, पृ० ३१० । $ ए० ए० मैक्डानल; इंडियाज़ पास्ट; पृ० १८१ ।