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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१६२

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२०. . , (१११ ) गया, जिससे ३० के लिये २० और १०, ६० के लिये २०, २०, २० और १० लिखने पड़ते थे। पीछे से मिस्रवालों ने किसी सरल विदेशी अंक-क्रम को देखकर अथवा अपनी बुद्धि से अपने भद्दे हिएरोग्लिफिक अंक-क्रम को सरल करने के लिये भारतीय अंक-क्रम जैसा नवीन क्रम बनाया, जिससे १ से ६ तक के लिये नौ, १० से ६० तक दहाइयों के लिए नौ और १०० तथा १००० के लिये एक एक चिह्न स्थिर किया। इस अंक-क्रम को हिएरेटिक कहते हैं और इसमें भी ऊपर के दोनों क्रमों के समान अंक दाहिनी ओर से बाई ओर लिखे जाते थे। डिमांटिक अंक हिएरेटिक से ही निकले हैं और इन दोनों में अंतर बहुत कम है, जो समय के साथ हुआ हो । यूरोप में भी प्राचीन काल में ग्रीक लोग केवल दस हजार तक की संख्या जानते थे और रोमन लोग एक हजार तक की उनके अंक-क्रम का प्रचार अव तक कभी कभी प्रकाशित पुस्तकों में सन् लिखने में, भूमिका में पृष्ठ-संख्या बतलाने के लिये अथवा घड़ियों में अंक बतलाने में प्रचलित हैं। उसमें १, ५, १०, ५०, १०० तथा १००० के चिह्न हैं, जिनको रोमन अंक कहते हैं। अाजकल सव पढ़े लिखे मनुष्य रोमन अंकों से परिचित हैं, इससे उनके विषय में अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है। इन सब प्राचीन अंक-क्रमों से ज्योतिष, गणित और विज्ञान की विशेष उन्नति होने की कोई संभावना नहीं थी। संसार की वर्तमान उन्नति इन्हीं नवीन अंक- क्रमों से हुई है। यह उपयोगी अंक-क्रम भारतवासियों ने ही निर्माण इस क्रम में दाहिनी से वाई और हटने पर प्रत्येक अंक का स्थानीय मूल्य दस गुना बढ़ जाता है, जैसे ११११११ में छहों अंक १ के ही हैं, परंतु पहले से ( दाहिनी ओर से लेने से ) १, दूसरे से १०, तीसरे से १००, चौधे से १०००, पाँचवें से १०००० , किया। . .