(१२८ ) योग्य सभी कार्यों का वर्णन एवं उनके रहन सहन और वार्तालाप पर भी प्रकाश डाला गया है। कामसूत्र में रज और वीर्य का भी वैज्ञानिक विवेचन किया गया है। संसार की स्थिति का परिचय कराने के लिये पारदारिक, वैशिक और श्रीपरिष्टक प्रकरण लिखे गए हैं। इस वर्णन से यह पता लगता है कि हमारे यहाँ प्राचीन समय में कामशास्त्र कितना विकसित, उन्नत और वैज्ञानिक था। इस ग्रंथ के बाद इस विषय पर कई और पुस्तके लिखी गई। हमारे समय के पिछले भाग में कफोक ( कोका पंडित ) नामक विद्वान् ने 'रतिरहस्य' लिखा। अाजकल के हिंदी 'कोकशास्त्र' इसी कोका पंडित के नाम से प्रसिद्ध है। इनके अतिरिक्त करनाटक के राजा नरसिंह के समकालीन ज्योतिरीश्वर ने 'पंचसायक' लिखा। वौद्ध पद्मश्रो का लिखा हुआ 'नागरसर्वस्व' भी इस विषय का अच्छा ग्रंथ है। हमारे समय के बाद भी इस विषय की बहुत सी पुस्तकें लिखी गई, जिनका उल्लेख हमने नहीं किया। . संगीत प्राचीन काल से ही भारतवर्ष ने संगीत शास्त्र में भी बहुत उन्नति की। संगीत में गान, वाद्य और नृत्य का समावेश होता था। सामवेद का एक भाग गान है, जो सामगान के संगीत साहित्य नाम से प्रसिद्ध है। वैदिक यज्ञों में प्रसंग प्रसंग पर सामगान होता था। हमारे निर्दिष्ट समय से पूर्व के बहुत से संगीत के विद्वानों-सदाशिव, शिव, ब्रह्मा, भरत, कश्यप, मतंग, याष्टिक, दुर्गा, शक्ति, नारद, तुंवरु, विशाखिल, रंभा, रावण, क्षेत्र- राज प्रादि-के नाम 'संगीत-रत्नाकर' में शाङ्गदेव ने उद्धृत किए , .
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