पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२३८

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. , 3 (१७७ ) हमारे समय के भिन्न भिन्न शैलियों के सुंदर मंदिर काही मानों पर विद्यमान हैं, जिनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया जाता है। आर्य शैली के ब्राह्मणों के मंदिर भुवनेश्वर ( उड़ीसा में ), नागदा और वाड़ाली ( दोनों उदयपुर राज्य में ), चित्तोड़गढ़, स्वालियर, चंद्रावती ( झालावाड़ राज्य में ). आसियों ( जाधयुः रान्च में ). चंद्रावती, वर्माण ( दोनों सिरोही राज्य से ), खजुराहो ( मध्य- भारत में ), कनारक, लिंगराज ( उड़ीसा में ) आदि अनेक स्थानों में हैं। इसी तरह बाबू, खजुराहो, नागदा, मुक्तगिरि र पातीताना आदि स्थानों के जैन मंदिर भारतीय शिल्पकला ; उनम नमून हैं। द्रविड़ शैली के मामजपुर ( महाबलिपुरम्-चिंगलीपट्ट जिले में ), कांजीवरम् ( कांची ), श्लोरा, नजार, बन्नुर ( मैतून के हसन जिले में ), बादामी ( वीजापुर जिले ), श्रीरंगन (त्रिचनापन्नों में ) और श्रवणबेलगोला ( हसन जिले में ) प्रादि मान में। ये मंदिर शिल्प की दृष्टि से कितने उत्तम है. यह विटानों के निम्नलिखित उद्धरणों से स्पष्ट हो जायगा । वाड़ोली के मंदिर की तक्षण-कला की प्रशंसा कर्नर टॉड ने लिखा है-'उसकी विचित्र और भव्य रचना का कमाल वर्णन करना लेखनी की शक्ति से बाहर है। यहाँ नानी हुनाका खजाना खाली कर दिया गया है। उसके लंभ, छत और नियर का एक एक पत्थर छोटे से मंदिर का दृश्य बतलालाई स्तंभ पर खुदाई का काम इतना सुंदर और बारीकी ६. माय किया गया है कि उसका वर्णन नहीं हो सकता।' भारतीय प्रसिद्ध विद्वान मि. फर्गुसन लिखते हैं-'आद को मंदिरों में: संगमरमर के बने हुए हैं, प्रत्यंत परिश्रम महन करनेवाली हिंधर की टॉकी से फीते जैसी पारीकी के साथ एनी मनोहर साल

  1. टोड; राजस्थान; जिल्द पृ० १७:-).

म०-२३ .. .