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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२५

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इसका परिणाम 'महायान' मत के रूप में कुशनवंशी राजा कनिष्क के समय में प्रकट हुआ। प्रारंभिक बौद्ध धर्म संन्यास-मार्ग-प्रधान था । इसके अनुसार ज्ञान और चार आर्य सत्यों की वौद्ध धर्म पर हिंदू भावना से निर्वाण पाया जा सकता है। वौद्ध धर्म का प्रभाव और महा- धर्म में ईश्वर की सत्ता नहीं मानी गई थी। यान संप्रदाय की उत्पत्ति इसलिये बुद्ध की उपस्थिति में भक्ति के द्वारा परमात्मा की प्राप्ति का उपदेश नहीं दिया जा सकता था। महात्मा बुद्ध के पीछे बौद्ध भिक्षुओं ने देखा कि सव लोग गृहस्थी छोड़कर भिक्षु नहीं बन सकते और न शुष्क तथा निरीश्वर संन्यास मार्ग उनकी समझ में आ सकता है। इसलिये उन्होंने भक्ति-मार्ग का सहारा लिया। स्वयं बुद्ध को उपास्य देव मानकर उनकी भक्ति करने का प्रतिपादन किया गया और बुद्ध की मूर्तियाँ बनने लगी। फिर २४ अतीत बुद्ध, २४ वर्तमान बुद्ध और २४ भावी बुद्धों की कल्पना की गई। इतना ही नहीं, बोधिसत्वों और अनेक तान्त्रिक देवियों आदि की भी कल्पना की गई और इन सबकी मूर्तियाँ बनने लगी । बौद्ध भिक्षुओं ने गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी अक्तिमार्ग द्वारा निर्वाण पद की प्राप्ति को संभव बताया। इस भक्ति-मार्ग-महायान–पर हिंदू धर्म या भगवद्गीता का बहुत प्रभाव पड़ा। इसके कुछ उदाहरण नीचे दिए जाते हैं- (१) हीनयान संप्रदाय के ग्रंथ पाली में और महायान संप्र- दाय के ग्रंथ संस्कृत में हैं (२) महायान मार्ग में भक्ति-मार्ग की प्रधानता है । (३) हीनयान संप्रदाय में महात्मा बुद्ध देवता के रूप में पूजे नहीं जाते थे, परंतु महायान में देवता मानकर बुद्ध की पूजा होने लगी। भारत में इस महायान संप्रदाय का प्रचार बहुत बढ़ता गया, इतना ही नहीं, बौद्ध दर्शन पर भी हिंदू दर्शन का प्रभाव बहुत पड़ा। नष्ट होता हुआ बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म पर भी गहरा प्रभाव डाले बिना