पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२५५

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"13 ( १८८) चिंतातुर दासी गाना नाली देशाती हो. इस नर, उसका हाथ पकड़े हुए उसकी गुग्यमुद्रा रा व सत्यंत उगम प्रतीत होती है, मानो वह यह सोच रही है कि मंग इस स्वामिनी का प्राग-पखरू कितना शीघ्र उड़नेवाला है। एक श्रार दागी पंन्या लिए हुए खड़ी है और दो पुरुष बाई तरफ से उसकी बार देख रहे, जिनके चेहरा पर गहरी उदासीनता छा रही। नीनं फर्श पर उसके संबंधी बैट हुए हैं, जो उसके जीवन की प्राशा छोड़कर शोकाकुल हो रहे हैं। एक अन्य खी हाथ से अपना मुंह टककर बुरी तरह रो रही है। इन चित्रों के असाधारण फलाकोशन से प्राकर्पित होकर कई चित्रकलामर्मज्ञों ने इनकी नकलें की और इन पर कई पुस्तकं भी प्रकाशित हो चुकी है। अजंटा की गुफाओं में अंकित जातक यादि को देखने से प्रतीत होता है कि उनके निर्माताओं ने अमरावती, साँची और भरहुत के स्तूपों की शिलाओं पर अंकित जातको तथा गांधार-शैली के तक्षण कला ( sculpture ) के नमूनां का सूक्ष्मता से निरीक्षण किया हो, क्योंकि उनमें तथा इनमें बहुत कुछ साम्य पाया जाता है। इसी तरह ग्वालियर राज्य के अमझेरा जिले में बाघ गाँव के पास की पर्वतीय गुफाओं में भी बहुत से रंगीन चित्र हैं, जो ई० स० की छठी और सातवीं शताब्दी के अनुमान किए जा सकते हैं। वे भी अजंटा के चित्रों के समान सुंदर, भावपूर्ण और चित्र-कला के उत्तम नमूने हैं। इन चित्रों की भी नकलें हो गई हैं और उन पर एक ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है। लंदन के 'टाइम्स' पत्र ने उक्त चित्रों की समालोचना करते हुए लिखा है कि यूरोप के चित्र उत्तमता में इनकी समानता नहीं कर सकते। 'डेली टेलीग्राफ' पत्र का कथन है कि कला की दृष्टि से ये चित्र इतने उत्कृष्ट है कि इनकी प्रशंसा नहीं