( ३८ ) थी, बल्कि बौद्ध और ब्राह्मण धर्म में भी परस्पर सहिष्णुता पा चुकी थी। कन्नौज के गाहडवालवंशी परम शैव गोविंदचंद्र ने दो वौद्ध भिक्षुओं को विहार के लिये छः गाँव दिए थे। बौद्ध राजा मदन- पाल ने अपनी स्त्री को महाभारत सुनानेवाले ब्राह्मण को एक गाँव दिया था। यह ध्यान देने योग्य बात है कि हमारे समय में हिंदू और बौद्धों में पहले का वैमनस्य नष्ट होकर उनमें परस्पर विवाह भी होने लग गए थे। परम शैव गोविंदचंद्र की स्त्री बौद्ध थी। जैन और हिंदू भी परस्पर विवाह संबंध करते थे, जो आज तक भी थोड़ा बहुत प्रचलित है। ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं कि पिता बौद्ध है तो पुत्र वैष्णव और पिता हिंदू है तो पुत्र वौद्ध । दोनों धर्म इतने समीप आ गए थे और उनमें परस्पर इतनी समानताएँ हो गई थीं कि उनकी दंतकथाओं में भेद करना भी कठिन हो गया। जैनियों और बौद्धों के प्रवर्तक भी हिंदुओं के अवतार माने गए। जैनियों, वौद्धों और हिंदुओं के धर्मों में २४ तीर्थकरों, २४ बुद्धों और २४ अवतारों की कल्पना में बहुत समानता है। हमारे निर्दिष्ट समय में यद्यपि तीनों धर्म प्रचलित थे, परंतु ब्राह्मण धर्म की सबसे अधिक प्रधानता थी। बौद्ध धर्म तो मृतप्राय हो चुका था। जैन धर्म बहुत परिमित क्षेत्र में रह गया था। हिंदू धर्म में भी शैव मत का प्रचार अधिक बढ़ रहा था। पिछले समय में बहुत से राजा शैव ही थे। तत्कालीन धार्मिक स्थिति का हमारा अवलोकन तव तक अपूर्ण ही रहेगा, जब तक हम भारतवर्ष में नए प्रविष्ट होनेवाले इस्लाम धर्म पर दो चार शब्द कहें। यद्यपि मुहम्मद भारत में इस्लाम कासिम से पहले भी मुसलमानों की कुछ चढ़ाइयाँ भारत की तरफ हुई थीं, परंतु इनका यहाँ पाद-प्रवेश नहीं हुआ। आठवीं सदी में सिंध पर मुसलमानों के अधिकार होने के साथ वहाँ इस्लाम का प्रवेश होने लगा। उसके का प्रवेश
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