3 5 ( ५४ ) एक शिला पर रानी और उसकी दासियों के चित्र अंकित है। रानी लहँगा पहने और ऊपर उत्तरीय धारण किए हुए है। स्मिथ ने अपनी पुस्तक में एक जैनमूर्ति के नीचे दो श्रावक और तीन श्राविकाओं की खड़ी मूर्तियों के चित्र दिए हैं। ये तीनों स्त्रियाँ लहँगे पहने हुए हैं। ये लहँगे आज के लहंगों के समान ही हैं। दक्षिण में, जहाँ लहँगे का रिवाज नहीं है, आज भी नाचते समय स्त्रियाँ लहँगा पहनती हैं स्त्रियाँ छींटवाले कपड़े भी पहनती थीं, जैसा कि अजंटा की गुफा में बच्चे को गोद में लिए हुए एक श्याम वर्ण की स्त्री के सुंदर चित्र से ज्ञात होता है। उसमें स्त्री कमर से नीचे तक आधी वाहवाली सुंदर छींट की अँगिया पहने हुई है। व्यापारी लोग रुई के चोगे और कुरते भी पहनते थे। दक्षिण के लोग सामान्य रूप से दो धोतियों से काम चलाते थे। धोतियों में सुंदर सुंदर किनारा भी होता था। एक धोती पहनते थे और एक ओढ़ते थे। कश्मीर आदि की तरफवाले कछनी ( Halfpant) पहनते थे। इन कपड़ों में विविधता, सुंदरता और सफाई की और भी बहुत ध्यान दिया जाता था। हुएन्संग ने रुई, रेशम तथा ऊन के वस्त्रों का वर्णन किया है। राज्यश्री के विवाह के लिये तैयार कराए गए वस्त्रों का वर्णन करते हुए बाण लिखता है-रेशम, रुई, ऊन, साँप की केंचुली के समान महीन, श्वास से उड़ जानेवाले, स्पर्श से ही अनुमेय और इंद्रधनुष के समान रंगवाले कपड़ों से घर भर गया .
- स्मिथ, मथुरा-ऐटिक्विटीज; प्लेट १४ ।
+ वही; प्लेट ८५। मिथ; श्राफ्सफर्ड; हिस्ट्री श्राफ़ इंडिया; पृ० १५६ । 8 राधाकुमुद मुकर्जी; हप', पृ० १७०-७।। || रास वील; बुद्धिस्ट रैकडू आफ दी वेस्टर्न वर्ल्ड; जिल्द १, पृ० ७५ ।