( १५२ ) चलता (विशेषण ), चलकर ( क्रिया-विशेषण ), मारे, लिए ( संबंधसूचक)। ३०७-हिंदी में रूप के अनुसार कृदंत दो प्रकार के होते हैं ( १ ) विकारी और ( २ ) अविकारी वा अव्यय । विकारी कृदंतों का प्रयोग बहुधा संज्ञा वा विशेषण के समान होता है और कृदंत अव्यय बहुधा क्रिया-विशेषण वा संबंधसूचक के समान आते हैं। यहाँ उन कृदंतों का विचार किया जाता है. जो काल-रचना तथा संयुक्त क्रियाओं में प्रयुक्त होते हैं। १-विकारी कृदन्त ३०८-विकारी कृदंत चार प्रकार के हैं-(१) क्रियार्थक संज्ञा, (२) कतृ वाचक संज्ञा, (३) वर्तमानकालिक कृदंत और., (४) भूतकालिक कृदंत । ३०६-धातु के अंत में “ना” जोड़ने से क्रियार्थकः . संज्ञा बनती है। इसका प्रयोग बहुधा संज्ञा के समान होता है। यह संज्ञा केवल पुल्लिंग और एकवचन में आती है और इसको कारक-रचना संबोधन कारक को छोड़ शेष कारकों में आकारांत पुल्लिंग ( तद्भव ) संज्ञा के समान होती है; जैसे, जाने को, जाने में। ३१०–क्रियार्थक संज्ञा के विकृत रूप के अंत में “वाला” लगाने से कतृवाचक संज्ञा बनती है; जैसे, चलनेवाला, . जानेवाला। इसका प्रयोग कभी कभी भविष्यत्कालिक कृदंत. विशेषण के समान होता है; जैसे, आज मेरा भाई आनेवाला
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