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पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/२२३

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( २१८ ) (ख) सकर्मक क्रिया का अर्थ कर्म के विना पूरा नहीं होता और द्विकर्मक क्रियाओं में दो कर्म पाते हैं; जैसे, पक्षी घोसले बनाते हैं। वह आदमी मुझे कष्ट देता है। ४०५-कर्म के उद्देश्य के समान संज्ञा अथवा संज्ञा के समान उपयोग में आनेवाला कोई दूसरा शन्द आता है। (क ) संज्ञा-माली फूल तोड़ता है। सौदागर ने घोड़े बेचे । (ख) सर्वनाम-वह श्रादमी मुझे बुलाता है। मैंने उसको नहीं देखा। (ग) विशेषण-दीनों को मत सतायो। उसने डूबते को बचाया। (घ) वाक्यांश-वह खेत नापना सीखता है। मैं आपका इस तरह बातें बनाना नहीं सुनूंगा । बकरियों ने खेत का खेत चर लिया। ४०६-गौण कर्म में भी ऊपर लिखे शब्द पाये जाते हैं; जैसे, (क) संज्ञा-पज्ञदत्त देवदत्त को ब्याकरण पढ़ाता है। (ख) सर्वनाम उसे यह कपड़ा पहनायो। (ग) विशेषण-वे भूखों को भोजन और नंगों को वस्त्र देते हैं। (घ) वाक्यांश-आपके ऐसा कहने को मैं कुछ भी मानः नहीं देता। .. ४०७--मुख्य कर्म अप्रत्यय कर्म-कारक में रहता है और गौण-कर्म बहुधा संप्रदान कारक में आता है, परंतु कहना, बोलना, पूछना आदि द्विकर्मक क्रियाओं का गौण कर्म करण- कारक में आता है। उदा०-नुम क्या चाहते हो ? मैंने उसे कहानी सुनाई। बाप लड़के से गिनती पूछता है। .