पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/२३

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उ+इ = वि——अनु+इत = अन्वित।

उ+ए = वे——अनु+एषण = अन्वेषण।

(ग) ऋ+अ = रा——पितृ+अनुमति = पित्रनुमति।

ऋ+आ = रा——मातृ+आनंद = मात्रानंद।

४७——ए, ऐ, ओ वा औ के आगे कोई भिन्न स्वर हो तो इनके स्थान में क्रमश: अय्, आय्, अव् वा आव् होता है; जैसे--

ने+अन = न्+ए+अ+न = न्+अय्+अ+न = नयन।

गै+अन = ग्+ऐ+अ+न = ग्+आय्+अ+न = गायन।

गो+ईश = ग्+ओ+ई+श = ग्+अव्+ई+श = गवीश।

नौ+इक = न्+और+इ+क = न्+आव्+इ+क = नाविक

(२) व्यंजन-सन्धि

४८——क, च, ट, प के आगे अनुनासिक को छोड़कर कोई घोष* वर्ण हो तो उसके स्थान में क्रम से वर्ग का तीसरा अक्षर हो जाता है; जैसे--

दिक्+गज = दिग्गज; वाक्+ईश = वागीश।

षट्+रिपु = षड्रिपु, षट्+आनन = षडानन।

अप्+ज= अब्ज, अच+अंत = अजंत।

४६——किसी वर्ग के प्रथम अक्षर से परे कोई अनुनासिक वर्ण हो तो प्रथम वर्ण के बदले उसी वर्ग का अनुनासिक वर्ण हो जाता है; जैसे--


  • स्पर्श-व्यंजनों के प्रत्येक वर्ग के पिछले तीन अक्षर, अंतस्थ और

स्वर।