(३८)
(ई) तिरस्कार अथवा क्रोध में किसी से; जैसे, "तू मेरे सामने से भाग जा, मैं तुझे क्या मारूँ!" "विश्वामित्र -- बोल, अभी तैंने मुझे पहचाना कि नहीं!"
९८ -- तुम -- मध्यमपुरुप (बहुवचन)।
यद्यपि 'हम' के समान 'तुम' बहुवचन है, तथापि शिष्टा- चार के अनुरोध से इसका प्रयोग एक ही मनुष्य से बोलने में होता है।
(अ) तिरस्कार और क्रोध को छोड़ कर शेष अर्थों में "तू" के बदले बहुधा "तुम" का उपयोग होता है; जैसे, "दुष्यंत -- हे रैवतक, तुम सेनापति को बुलाओ।" उपा- ध्याय -- पुत्री, कहो, तुम कौन कौन सेवा करोगी?"
९९ -- वह -- अन्यपुरुष (एकवचन)।
(यह, जो, कोई, कौन इत्यादि सब सर्वनाम अन्यपुरुष हैं। यहाँ अन्यपुरुष के उदाहरण के लिए निश्चय-वाचक 'वह' लिया गया है।)
'वह' का प्रयोग नीचे लिखे अर्थों में होता है --
(अ) किसी एक प्राणी, पदार्थ वा धर्म के विषय में बोलने के लिए; जैसे, "नारद -- निस्संदेह हरिश्चंद्र महाशय है। उसके आशय बहुत उदार हैं।" "जैसी दुर्दशा उसकी हुई, वह सबको विदित है।"
(आ) बड़े दरजे के आदमी के विषय में तिरस्कार दिखाने के लिए; जैसे, "वह (श्रीकृष्ण) तो गँवार ग्वाल है।"