पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/९

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जैसे, अं, अः। व्यंजनों के समान इनके उच्चारण में भी स्वर की आवश्यकता होती है; पर अंतर यह है कि स्वर इनके पहले आता है और दूसरे व्यंजनों के पीछे; जैसे, अ+ंं, क्+अ।

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दूसरा अध्याय

लिपि

७--लिखित भाषा में मूल-ध्वनियों के लिए जो चिह्न मान लिये गये हैं, वे भी वर्ण कहलाते हैं। जिस रूप में ये वर्ण लिखे जाते हैं, उसे लिपि कहते हैं। हिंदी-भाषा देवनागरी लिपि* में लिखी जाती है।

८--व्यंजनों के अनेक उच्चारण दिखाने के लिए उनके साथ स्वर जोड़े जाते हैं। स्वर अथवा स्वरांत व्यंजन अक्षर कहलाते हैं। व्यंजनों में मिलने से स्वर का जो रूप बदल जाता है, उसे मात्रा कहते हैं। प्रत्येक स्वर की मात्रा नीचे लिखी जाती है--

अ, आ, इ, ई, उ,ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ

ा, ि, ी, ु, ू, ृ, े, ै, ो, ौ


  • 'देवनागरी' शब्द का अर्थ है 'देवताओं के नगर से संबंध रखनेवाली'। जान पड़ता है कि आर्य्य लोग अपने को अनार्यों से श्रेष्ट समझकर देवता मानते थे।