(६४ ) "इस पापी का अपराध इससे भी अधिक था। यह दण्ड पाकर भी अभी पाप से उन्मुक्त नहीं हुआ-जब तक तुम क्षमा न करो । इमने हमारे दल को बिन्न-भिन्न कर दिया । पृथ्वी भर की स्त्रियाँ हमारी बहनें हैं । यह तो हमारा व्रत है !” युवक नायक का सुन्दर मुख लाल हो गया। उसके चारों ओर उज्ज्वल आमा फैल गई । उसने टपा-टप आँसू गिराते हुए कहा- “बहिन, इस पापी को क्षमा कर दो, वरना स्वयम् गोली मार लूँगा।" उसने पिस्तौल उठा कर अपने सिर में लगाली। बालिका दोड़ी उसने पिस्तौल युवक से छीन ली फिर क्षण भर चुप खड़ी रही। इसके बाद उसने भरीए स्वर में कहा-"खड़े हो जाओ। जमीन में क्यों पड़े हो !" युवक ने कहा-"मेरे साथी को जब तक तुम क्षमा न कगेगी- खड़ा न हूँगा। या तो क्षमा करो-या मुझे गोलो मारो, पिस्तौज तुम्हारे हाथ में है। उसमें अभी चार गोलियाँ हैं। निशाना साधने की जरुरत नहीं। मेरी खोपड़ी में नली लगा कर घोड़ा दबा दो। युवक नायक की आँखें सूख गई। उसके स्वर में तीखा- पन भी था । बालिका आगे बढ़ी उसने युवक का हाथ पकड़ लिया और कहा- "उठो-उठो।" "तब क्षमा किया ?"
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