पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१८३

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(१०४)

हृदय कमल जब मुर्झावे तब भक्ति भाव में रोना।
पाप वासना दुश्चिन्ता सब नयन नीर में धोना।
जब आओ तब उससे पहिले पाप गढ़ी को ढाओ।
जाओ—
दुर्बल तन में अचल आत्म बल का अब परिचय देना।
अचल खड़े रहना पर्वत से रौ में तनिक न बहना।
अटल धैर्य से नर्म गर्म सब सबकी सब कुछ सहना।
शान्त अहिन्सा के अभ्यासी शान्त शान से रहना।
जब आओ तब उसी पुरुष की छाँह ओढ़ कर आओ।
जायो—
खबरदार रहना कोयों में आँसू छलक न आवें।
उन आँखों की रौद्र अग्नि बस तनिक न बुझने पावे।
हिंसक ज्वाला में दुर्लभ तप तेज न जलने पावे।
उस एकान्त वास में यदि कुछ नई भावना आवे।
उन्हें साथ में लाओ जब तुम दुर्ग विजय कर आओ।
जाओ—
व्यग्र न होना, पाप घड़े को ऊपर तक भरवाना।
सदा अधिक दुखदाई है कच्चा फोड़ा चिरवाना।
मनकी आग न बुझने देना नहीं उकसने, देना।
रोष अश्व की रास कड़े हाथों से पकड़ें रहना।
वज्रपन्थ के पथिक बने हो फिर ऐसे ही आयो।