पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

BAL Krishan क्रांतिकारिणी [आयुर्वेदाचार्य श्रीयुत चतुरसेनजी शास्त्री] (१) मी बड़ी तेज थी। पर क्या किया जाय, मित्र की कन्या के विवाह में तो जाना जरूरी था। तबियत ठीक न थी। छोटे बच्चे के चेचक निकल आई थी। पत्नी ने बहुत ही नाक-भौं सिकोड़ी, पर मुझे जाना ही पड़ा। मैं इंटर-क्लास के एक छोटे डिब्बे में अनमना-सा होकर जा बैठा। मन में तनिक भी प्रसन्नता न थी। बच्चे का ध्यान रह-रहकर आता था। लू और धूप दोनों अपने ज़ोर पर थीं, डिब्बे में मैं अकेला था। कोई साथी आ जाय, तो अच्छा! यह मैं सोच रहा था । गाड़ी ने सीटी दी। जो लोग प्लेटफार्म

  • यह कहानी एक सत्य घटना के आधार पर उस समय

लिखी गई थी जब मेरठ में कम्युनिष्टों पर मुकदमा चल रहा था।