पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३४)
[छठां
मल्लिकादेवी

तकलीफ़ आपको दी, क्या इसे आप समझ सकते हैं ?

महाराज क्षणभर उनकी बातों पर विचार करके निर्भय होकर बोले,-" जिस ममिलाषा से यह गर्हित कार्य किया गया है, उसमें केवल शठता के अतिरिक्त और क्या होगा ?"

एक पठान,-"आप ज़रा अकलमंदी को जगह देकर गुफ्तगू कीजिए । खैर ! अब जो आपको इस कैद से छूटना मंज़र हो तो हमलोगों की तीन बातें आप मंजूर करिए; वर न कयामत तक आपको यही अपनी जिंदगी बसर करनी होगी। अगर आपने हमारी अर्ज कुबूल की तो ताज़ीस्त हमलोग आपके साथ दोस्ती की राह से पेश आएंगे।"

महाराज,-" तुम्हारी बातों में सभ्यता का लेशमात्र भी नहीं है, इससे अनुमान होता है कि तुम्हारा स्वभाव कैसा निंदनीय है। इसीसे तुम्हारी बातों और मन्तव्यों का भी कुछ कुछ आशय हमने समझा है, अर्थात् वह भी मनुष्यता से रहित ही होगा । अस्तु जी हो, प्रथम तुम अपना आशय प्रकट करो।

एक पठान,-".अव्वलन यह कि हमलोग कारे ठगी करते हैं, लेकिन सल्तनत का इन्तज़ाम ठीक होने से हमलोगों के कामों में खलल पड़ता है, इसीलिये हमलोगों ने सूबेदार साहब को कुछ सालाना नज़राने पर ठीक कर लिया है; चुनांचे अब वे हमलोगों से,या हमलोगों के कामों में दस्तंदाजी नहीं करेंगे।मगर सुना है कि शाहेदेहली यहां वास्ते फ़तहयाधी के आ रहे हैं, सो आप हर्गिज़ उनकी मदद न करें, बल्कि उन्हें यहांसे दूर करने की कोशिश करें। यानी खुलासा यह कि आप बादशाह की ओर न मिलकर सूबेदार साहब की मदद करें।

"दोयमश, इन दिनों लूट में बहुत माल होथ आते हैं, मगर बवजह न रहने किसी ज़बरदस्त मददगार के हर जगह हमलोग कामयाबी नहीं हासिल कर सकते; इस वास्ते इरादा है, कि आप हमारे गरोह के सरदार और सरपरस्त बने और लूट के माल का चौथाई हिस्सा आप खुशी से लेलेवें।

तीसरे अपनी अमलदारी में ठगोपरापजुल्म न करें,और बेरोक टोक डांका पड़ने दिया करें। अगर खदानस्खास्ते कोई ठग गिरफ्तार होकर आपके रूबरूपेश कियाजाय तो वह फ़ौरन छोड़ दिया जाया करे।